है स्वप्न मेरा, जागा-जागा, हरा-भरा!
अर्ध-मुकम्मिल से, कुछ क्षण,
थोड़ा सा,
आशंकित, ये मन,
पल-पल,
बढ़ता,
इक, मौन उधर,
इक, कोई सहमा सा, कौन उधर?
कितनी ही शंकाएँ,
गढ़ता,
इक व्याकुल मन,
आशंकाओं से, डरा-डरा,
वो क्षण,
भावों से, भरा-भरा!
है स्वप्न मेरा, जागा-जागा, हरा-भरा!
शब्द-विरक्त, धुंधलाता क्षण,
मौन-मौन,
मुस्काता, वो मन,
भाव-विरल,
खोता,
इक, हृदय इधर,
कोई थामे बैठा, इक हृदय उधर!
गुम-सुम, चुप-चुप,
निःस्तब्ध,
निःशब्द और मुखर,
उत्कंठाओं से, भरा-भरा,
हर कण,
गुंजित है, जरा-जरा!
है स्वप्न मेरा, जागा-जागा, हरा-भरा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अर्ध-मुकम्मिल से, कुछ क्षण,
थोड़ा सा,
आशंकित, ये मन,
पल-पल,
बढ़ता,
इक, मौन उधर,
इक, कोई सहमा सा, कौन उधर?
कितनी ही शंकाएँ,
गढ़ता,
इक व्याकुल मन,
आशंकाओं से, डरा-डरा,
वो क्षण,
भावों से, भरा-भरा!
है स्वप्न मेरा, जागा-जागा, हरा-भरा!
शब्द-विरक्त, धुंधलाता क्षण,
मौन-मौन,
मुस्काता, वो मन,
भाव-विरल,
खोता,
इक, हृदय इधर,
कोई थामे बैठा, इक हृदय उधर!
गुम-सुम, चुप-चुप,
निःस्तब्ध,
निःशब्द और मुखर,
उत्कंठाओं से, भरा-भरा,
हर कण,
गुंजित है, जरा-जरा!
है स्वप्न मेरा, जागा-जागा, हरा-भरा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 16 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर..
ReplyDeleteशब्द शब्द झरी झरी
संवेदनाओं से भरी भरी✍
आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया पम्मी जी।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3764 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर सृजन आदरणीय सर .
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया अनीता जी।
Deleteसुन्दर रचना मान्यवर।
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया उर्मिला जी।
Deleteवाह!बहुत खूबसूरत सृजन पुरुषोत्तम जी ।
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया शुभा जी।
Deleteआदरणीय सर,
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा। नये स्वप्नों से भरे हुए मन का बहुत ही आशावादी और संवेदनशील वर्णन।आपके नाम ने मुझे सबसे पहले आकर्षित किया क्योंकि आपका नाम मेरे प्रभु भरी राम पर है और रचना भी उतनी ही प्यारी और प्रेरणादायक पढ़ने को मिली। एक विद्यार्थी होने के नाते मेरा इस कविता से जड़ाव अधिक है क्योंकि मैं भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का स्वप्न देख रही हूँ।
सर, आपसे अनुरोध है कि आप मेरे भी ब्लॉग पर आयें। मैं अपनी स्वरचित कविताएं अपने ब्लॉग काव्यतरंगिनी पर डालती हूँ। अपने ब्लॉग की लिंक कॉपी नहीं कर पा रही पर यदि आप मेरे नाम पर क्लिक करें तो आपको मेरा प्रोफ़ाइल दिखाई देगा। उसपर मेरे ब्लॉग का नाम लिखा होगा। उस पर क्लिक करके आप मेरे ब्लॉग पर पहुंच जाएंगे। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिए अनुग्रहित रहूँगी। धन्यवाद।
"काव्यतरंगिनी" .....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत ब्लॉग है आपना। अपने नाम को सार्थक करता हुआ। शुभाशीष और शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर,गहन संवेदनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअभिनव रचना।
हृदयतल से आभार आदरणीया कुसुम जी।
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