Thursday, 20 January 2022

एकाकी बरगद

अब, कम ही खिल पाते हैं बरगद!
कहां दिख पाते हैं, बरगद!

जटाओं वाले, बूढ़े, विशालकाय, बरगद,
निःस्वार्थ, भावी राह करे प्रशस्त,
आत्मविश्वास, स्वाभिमान के द्योतक,
प्रगति के, ध्वज-वाहक,
नैतिक मूल्यों के संवाहक, ये बरगद!

अब, कम ही निखर पाते हैं बरगद!

हो जाते खुश, ले अपनों की खैर-खबर,
आशा में, उनकी ही, होते जर्जर,
बैठे राह किनारे, सदियों, बांह पसारे,
बे-सहारे, अतीत किनारे,
संबल, आशाओं के, बन हारे बरगद!

अब, कम ही संवर पाते हैं बरगद!

देखे बसन्त कई, गुजारे कितने पतझड़,
झेले झकझोरे, हवाओं के अंधर,
विषम हर मौसम, खुद पे रह निर्भर,
सहेजे, इक स्वाभिमान,
गगन तले, कितने एकाकी, बरगद!

अब, कम ही खिल पाते हैं बरगद!
कहां दिख पाते हैं, बरगद!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 जनवरी 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. अपनी अन्य रचनाओं से हट कर किया गया सृजन । अच्छा लगा ।।
    बरगद रहते तो हैं ,
    लेकिन
    कर दिया जाता है
    नज़रंदाज़ ।
    बस अब चमकते नहीं
    खिलखिलाते नहीं
    एकाकी रह
    भीगते रहते हैं
    अपनी ही नमीं से ।
    👌👌👌👌👌 सोचने के लिए बाध्य करती रचना ।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया संगीता जी।।।।।।

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  4. आपकी कविता ने बचपन की यादें ताज़ा कर दीं. कोलकाता में विशाल बोटैनिकल गार्डन में पिकनिक मनाने गए थे. कौतुक की सीमा नहीं थी ! एक ही पेड़ में जटाओं से उगते दूर-दूर तक फैले इतने सारे पेड़ ! अमित स्मृति है राष्ट्रीय वृक्ष के विराट स्वरुप की जो अपने भीतर ताक़त का अहसास जगाती है.

    सच है, अब नहीं दिखाई देते घनी छाँव देते वट वृक्ष.
    एक भली सी कविता के ज़रिये याद दिलाने के लिए धन्यवाद् और बधाई !

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    1. इस बेहतरीन प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आदरणीया नुपुर जी।

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  5. अब कम ही खिल पाते हैं बरगद....
    सटीक रचना!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया मनीषा जी

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