Saturday, 15 January 2022

ईश्क

उस मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है!

गर अटक जाएं, कहीं ये पलकें,
तो समझिए, मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है!
पर, बस कैद होकर, रह गए कितने नजारे,
और, ये दिल भी हारे,
कितनी, अलग सी ये बात है!

उस मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है!

फिर, उन्हें ही ढ़ूंढ़ती, ये पलकें,
और, उन्हीं फासलों में, मचले कहीं जज्बात हैं!
ये, धुंधलाती नजर, भूल पाती हैं कब उन्हें,
ख़ामोश, ये लब कहे,
ईश्क की, अलग ही बात है!

उस मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है!

वो तो रहे, इधर के ना उधर के,
वश में रख सके ना, जो धड़कनों के हालात हैं!
इक दरिया ईश्क का यह, डूबे या कि उबरे,
या बिखरे, और सँवरे,
अपने, नसीबों की ये बात है!

उस मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है!

ये, झौंके पवन के, हल्के-हल्के,
शायद, गुजरे पलों के, यादों की इक बारात है!
पर, कह गईं कुछ, पलकों तले, ये दो बूंदें,
जा वहीं, तोर कर हदें,
जिधर, इक नई शुरुआत है!

उस मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. ये , झौंके पवन के, हल्के-हल्के,
    शायद, गुजरे पलों के, यादों की इक बारात है!
    पर, कह गईं कुछ, पलकों तले, ये दो बूंदें,
    जा वहीं, तोर कर हदें,
    जिधर, इक नई शुरुआत है!... वाह!बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  3. गर अटक जाएं, कहीं ये पलकें,
    तो समझिए, मुकम्मल ईश्क की ये शुरुआत है!
    पर, बस कैद होकर, रह गए कितने नजारे,
    और, ये दिल भी हारे,
    कितनी, अलग सी ये बात है!.. बहुत ही सुंदर अहसास में डुबोती रचना ।

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  4. अंतर्मन को छूती हुई रचना

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