Monday, 5 September 2022

फिक्र


फिक्र, उनकी ही फिर भी.....

यूं, बिछड़ कर, सदा जिक्र में जो रहे,
क्या हो, कल किसी राह में, अगर वो फिर मिले!
जग उठे, शायद, फिर वो ही अनबुने सपने,
जल उठे, फिर, अधबुझी सी वो शमां,
इक अंधेरी रात में!

फिक्र, उनकी ही फिर भी.....

जिक्र फिर, उनकी ही हो, हर घड़ी,
जल उठे, अंधेरों में, इक संग, करोड़ों फुलझड़ी,
जलती हर किरण, राहों में, उनको ही ढूंढे,
बस फिक्र ये ही, कि वो फिर ना रूठे,
यूं जरा सी बात में!

फिक्र, उनकी ही फिर भी.....

गुम है मगर, उन रास्तों का सफर,
न उन राहों का पता, न उन दरक्तों की है खबर,
धूमिल से हो चले, उन कदमों के निशान,
गहराते इस रात का, न कोई विहान,
न ही कोई साथ में!

फिक्र, उनकी ही फिर भी.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर और प्यारी कविता इस जीवन पथ की यात्रा की विसंगतियों के भेद खोलती हुई। बधाई और आभार।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 06 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-9-22} को "गुरु देते जीवन संवार"(चर्चा अंक-4544) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  4. फ़िक्र जो जीवन भर साथ चलती है,बड़ी खूबसूरती से आपने उसे इस रचना में प्रस्तुत किया है आदरणीय सुन्दर, भावप्रवण हृदय स्पर्शी रचना

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  5. बहुत सुंदर। 'फिक्र उनकी ही है फिर भी'- वाह। बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी रचना। सादर।

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  6. खूबसूरत रचना, बिछड़ के भी बिछड़े न कभी...सकारात्मक भाव| बधाई !!

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  7. फिक्र शायद उन्हीं की ज़्यादा रहती है जो मिल कर भी न मिलें । अब इसे बिछड़ना कहते हैं तो पता नहीं । सुंदर रचना ।

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।

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  9. सुन्दर भाव संयोजन .... फ़िक्र उनकी फिर भी वाह

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