Friday 16 September 2022

बेचैनियाँ


न मन है, जमीं पर कहीं,
न मन की आहटें,
उमरता, सन्नाटों में, बिखरता वो बादल,
किससे, कहे,
अपनी, बेचैनियों के किस्से!

बहा लिए जाए, ये अल्हड़ पवन,
चल दे, कहीं छोड़ कर,
सूने पर्वतों के, उन्हीं मोड़ पर,
कल, छोड़ आए,
थे जिसे!

ले उड़े कहीं, बन्द, दायरों से परे,
तोड़ कर, वो, बंध सारे,
बह चले , फिर उन रास्तों पर,
कल, भूल आए,
थे जिसे!

गगन के, दो किनारे, दूर कितने,
हारे-बेसहारे, वो सपने,
चाहे बांधना वो, अंकपाश में,
ना, बिसार पाए,
थे जिसे!

न मन है, जमीं पर कहीं,
न मन की आहटें,
उमरता, सन्नाटों में, बिखरता वो बादल,
किससे, कहे,
अपनी, बेचैनियों के किस्से!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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