रैन ढ़ले, सब ढ़ल जाए,
शब की, हल्की सी परछाईं,
नैन तले, रह जाए!
तमस भरा, आंचल,
रचता जाए, नैनों में काजल,
उभरता, तम सा बादल,
बाहें खोल, बुलाए!
शब की, हल्की सी परछाईं,
नैन तले, रह जाए!
इक, अँधियारा पथ,
और, ये सरपट दौड़ता रथ,
अन-हद अनबुझ कथ
यूं , कहता जाए!
शब की, हल्की सी परछाईं,
नैन तले, रह जाए!
जलते बुझते सपने,
ये हल्के, टिमटिम से गहने,
बोझिल सी पलकों पर,
कुछ लिख जाए!
शब की, हल्की सी परछाईं,
नैन तले, रह जाए!
जीवन्त, सार यही,
शब सा, इक संसार यही,
सौगातें, सपन सरीखी,
नैनों को दे जाए!
शब की, हल्की सी परछाईं,
नैन तले, रह जाए!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 16 सितंबर 2022 को 'आप को फ़ुरसत कहाँ' (चर्चा अंक 4553) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसुंदर, वाह वाह!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteजीवन्त, सार यही,
ReplyDeleteशब सा, इक संसार यही,
सौगातें, सपन सरीखी,
नैनों को दे जाए!... बहुत सुंदर।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी
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