Showing posts with label अलग. Show all posts
Showing posts with label अलग. Show all posts

Saturday 28 August 2021

दो अलग बातें

हैं कितनी अलग, ये दो बातें!

चुप से, वो कहकहे, सारे अनकहे,
गूंजता वो आंगन, बहका सा ये सावन,
लरजते दो लब, सहमे वो दो पल,
उन पलों की, ये सौगातें!

हैं कितनी अलग, ये दो बातें!

गुजर से गए जब, उभर आए तब,
नजरों से दूर, उभर आए नजरों में पर,
ख्यालों में तय, हो चले ये फासले,
हैरां करे, वो सारी यादें!

हैं कितनी अलग, ये दो बातें!

करे कैद, टिम-टिमाते वो सितारे,
टँके फलक पर, उन्हें अब कैसे उतारें,
यूँ ही देखते, बस रह से गए वहीं,
तन्हा, गुजरती रही रातें!

हैं कितनी अलग, ये दो बातें!

छूकर गईं, फिर, उनकी ही सदा,
भूलें कैसे? ओ जाते पल, तू ही बता,
छू लें कैसे! बहती सी वो है हवा,
टूटी, यहाँ कितनी शाखें!

हैं कितनी अलग, ये दो बातें!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 3 November 2019

प्यास

हुई है, प्यास कैसी ये सजग?
है जो, पानी से अलग!

घूँट, कितनी ही पी गया मैं!
प्यासा! फिर भी, कितना रह गया मैं!
तृप्त, क्यूँ न होता, ये मन कभी?
अतृप्ति! ये कैसी रही?
मन की प्यास, क्यूँ वैसी ही रही?
कुछ है, जो पानी में नहीं!
ढूंढ़ता है, मन वही!
पानी के किनारे, हम थे पानी के सहारे,
पर भटक रहे हम, प्यास के मारे,
है पानी में, इक परछाईं मेरी,
हूँ मैं, परछाईं से अलग!

हुई है, प्यास कैसी ये सजग?
है जो, पानी से अलग!

यूँ तो, संभलता रह गया मैं!
पी कर! थोड़ा, बहलता रह गया मैं!
मशगूल, रहकर दुनियाँ में कहीं!
भूला, सत्य को मैं कहीं!
गूंज मन की, दबाए खुद में कहीं!
करता ही रहा मैं, अनसुनी,
सुनता है, मन वही!
दरिया किनारे, कलकल बहते हैं धारे,
रेत ये सूखे से, हैं दरिया किनारे,
इस प्यास में है, रानाई मेरी,
हूँ मैं, रानाई से अलग!

हुई है, प्यास कैसी ये सजग?
है जो, पानी से अलग!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Friday 1 April 2016

ये अलग बात है कि...!

ये अलग बात है कि.............

दुनियाँ की इस भीड़ मे एक हम भी हैं,
ये अलग बात है कि हम दिखते नही हैं इस भीड़ में।

अंजान शक्लों के ढ़ेर सी है ये दुनियाँ,
ये अलग बात है कि हम ढ़ूंढ़ते है कोई अपना यहाँ ।

अलग अलग से शक्ल हैं इस भीड़ में,
कौन किसको देखता है यहाँ अंजान सी इस भीड़़ में।

उतरे हुए से शक्ल हर शख्श के हैं यहाँ,
अपना कोई मिल गया तो खिल जाते हैं चेहरे यहाँ ।

नाम रिश्तों का देकर भूल जाते है सब,
ये अलग बात है कि हम रिश्ते निभा रहे हैं अबतक।

मतलब की बात न हो तो सुनते कहाँ हैं सब,
ये अलग बात है कि हम यहाँ सुने जा रहे बेमतलब।

इस भीड़ की तन्हाईयों मे घुट चुके हैं दम,
ये अलग बात है कि अब तलक यहाँ जी रहे हैं हम।

ये अलग बात है कि.............