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Monday 24 July 2017

आसक्ति

आसक्त होकर निहारता हूँ मैं वो खुला सा आकाश!

अनंत सीमाओं में स्वयं बंधी,
अपनी ही अभिलाषाओं में रमी,
पल-पल रूप अनंत बदलती,
कभी निराशाओं के काले घनघोर घन,
सन्नाटों में कभी घन की आहट,
वायु सा कभी प्रतिपल तेज चरण,
कभी साए सी चुपचाप, प्रतिविम्ब सी मौन....

आसक्त होकर निहारता हूँ मैं वो खुला सा आकाश!

विशाल भुजपाश में जकड़ी,
व्याकुल मन सी दौड़ती वो हिरणी,
कभी ब्रम्हांड में हुंकार भरती,
वेदनाओं मे क्रंदन करती वो दामिणी,
कभी आँसूओं में करती क्रंदन,
या कभी सन्नाटों के क्षण, आँसुओं के मौन...

आसक्त होकर फिर निहारता हूँ मैं वो खुला आकाश!
जहाँ....
मुक्त पंख लिए नभ में उड़ते वे उन्मुक्त पंछी,
मानो क्षण भर में पाना चाहते हो वो पूरा आकाश...

Sunday 16 October 2016

वजूद / अस्तित्व

अस्तित्व की तलाश में, तू उड़ खुले आकाश में.....

ऐ मन के परिंदे, तू उड़ चल हवाओं में,
बह जा कहीं बहती नदी सी उतरकर पहाड़ों में,
स्वच्छंद साँस ले तू खुलकर फिजाओं में।

वजह ढूंढ ले तू अपने वजूद के होने की,
हैं अकेला सब यहाँ, राहें अकेली सबके मन की,
ढूंढने होंगे तुझे, वजह अपने अस्तित्व की।

आजाद सा तू परिंदा अबोध अज्ञान सा,
दिशाहीन रास्तों पर, यूँ ही कहीं क्यूँ भटक रहा,
पथ प्रगति के है, तेरे सामने प्रशस्त खड़ा।

भले ही विपरीत हों, ये झोंके हवाओं के,
सशक्त पंख हैं तेरे,रख भरोसा अपनी उड़ानों पे,
है ये जंग अस्तित्व की, जीतनी होगी तुझे।

ऐ मन के परिंदे, तू उड़ अपनी वजूद ढूंढने,
बहकती नदी बन, बह पहाड़ों के हृदय चीर के,
वजह जिंदगी को दे, वजूद खुद की ढूंढ ले।

तू उड़ खुले आकाश में, अस्तित्व की तलाश में....

Wednesday 31 August 2016

कुछ प्रश्न

है कौन वहाँ?
वो दूर शिलाओं पर बैठा,
एकटक हो, जो निहारता आकाश,
गुमसुम सा खामोश,
एकाकी वो, ढ़ूँढ़ता अपने हिस्से का आकाश,
कहीं वो मेरा मन तो नहीं?

मेरा मन!
अभी तक तो था वो मेरे ही पास!
नाशाद था कुछ दिनों से मगर!
एकाकी सा खिन्न,
अनसुनी थी कोलाहल में उसकी आवाज,
कहीं वो पागल रूठा तो नहीं?

अकेला मन!
अंजाना मैं भी हूँ अपने मन से,
क्या है उसके अन्तर्मन मे?
क्युँ है वो खिन्न?
कैसा है उस मन की कल्पना का आकाश?
कहीं उसका सपना टूटा तो नहीं?

Tuesday 14 June 2016

वो तस्वीर

बनती-बिगरती बादलों में उलझी सी इक तस्वीर,

हर क्षण रंग रूप बदलती वो तस्वीर,
पल पल दृग को वो छलती,
मनमोहक भावों से वो मन को हरती,
खुली जटाओं मे बादल की कहीं गुम हो जाती,

बरसती-बिखरती बादलों में बिखरी सी वो तस्वीर,

आकाश में फिर उभरती वो तस्वीर,
बादलों संग अठखेलियाँ करती,
चंचल सी स्वच्छंद विचरती वो तस्वीर,
भावप्रवण मन को कर खुद भावविहीन हो जाती,

जीवन के कितने ही किस्से कह जाती वो तस्वीर,

निःस्वार्थ जीवन जीती वो तस्वीर,
कुछ पल जग के दुख हर लेती,
आँखों में सपने जीने के भरती वो तस्वीर,
कर्मों की राह पर चलती फना हर बार वो होती,

कर्मपथ पर चलना सिखाती उलझी सी वो तस्वीर।

Friday 20 May 2016

पुकारता मन का आकाश

पुकारता है आकाश, ऐ बादल! तू फिर गगन पे छा जा!

बार बार चंचल बादल सा कोई,
आकर लहराता है मन के विस्तृत आकाश पर,
एक-एक क्षण में जाने कितनी ही बार,
क्युँ बरस आता है मन की शान्त तड़ाग पर।

घन जैसी चपल नटखट वनिता वो,
झकझोरती मन को जैसे हो सौदामिनी वो,
क्षणप्रभा वो मन को छल जाती जो,
रुचिर रमणी वो मन को मनसिज कर जाती जो।

झांकती वो जब अनन्त की ओट से,
सिहर उठता भूमिधर सा मेरा अवधूत मन,
अभिलाषा के अंकुर फूटते तब मन में,
जल जाता है यह तन विरह की गहन वायुसखा में।

मन का ये आकाश आज क्युँ है सूना सा,
कही गुम सा वो बादल क्षणप्रभा है वो खोया सा,
सूखे है ये सरोवर मन के, फैली है निराशा,
पुकारता है आकाश, ऐ बादल! तू फिर गगन पे छा जा!

Saturday 7 May 2016

अभ्र पर शहर की

आसक्ति का नीरद भ्रम की वात सा अभ्र पर मंडराता!

ढूंढ़ता वो सदियों सेे ललित रमणी का पता,
अभ्र पर शहर की वो मंडराता विहंग सा,
वारिद अम्बर पर ज्युँ लहराता तरिणी सा,
रुचिर रमनी छुपकर विहँसती ज्युँ अम्बुद में चपला।

आसक्ति का नीरद भ्रम की वात सा अभ्र पर मंडराता!

जलधि सा तरल लोचन नभ को निहारता,
छलक पड़ते सलिल तब निशाकर भी रोता,
बीत जाती शर्वरी झेलती ये तन क्लेश यातना,
खेलती हृदय से विहँसती ज्युँ वारिद में छुपी वनिता।

आसक्ति का नीरद भ्रम की वात सा अभ्र पर मंडराता!

अभ्र = आकाश,
वारिद, अम्बुद=मेघ
विहंग=पक्षी

Wednesday 30 March 2016

मलिन हुआ वो धवल चाँद

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?

वो धवल चाँद मलिन सा दिख रहा,
प्रखर आभा बिखेरती थी जो रात को,
जा छुपा घने बादलों की ओट में वो,
क्या शर्म से सिमट रही है चाँद वो?

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?

किसी अमावस की उसको लगी नजर,
धवल किरणें उसकी छुप रही हैं रात को,
निहारता प्यासा चकोर नभ की ओर,
क्या ग्रहण लग गई है उस चाँद को?

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?

सिमट रही कुम्हलाई सी वो बादलों में,
पूंज किरणों की बिखर गई है आकाश में,
अंधकार बादलों के छट गए हैं साथ में,
क्या नभ प्रेम में डूबी हुई है चाँद वो?

आज रूठा हुआ क्युँ मुझसे मेरा चाँद वो?

Wednesday 17 February 2016

अनबुझी प्यास

अंकुरित अभिलाषा पलते एहसास,
अनुत्तिरत अनुभूतियाँ ये कैसी प्यास?

अन्तर्द्वन्द अन्तर्मन अंतहीन विश्वास,
क्षणभंगूर निमंत्रण क्षणिक क्या प्यास?

पिघलते दरमियाँ छलकते आकाश,
अनकहे निःस्तब्ध जज्बात कैसी मौन प्यास?

अमरत्व अभिलाषा स्मृति अविनाश,
अंकुरित अनुभूति अनुत्तरित अनबुझी प्यास?

Friday 12 February 2016

नभ की सुन लो, नभ संग तुम भींग लो!

तुम नभ की सुन लो, जरा सा नभ संग तुम भींग लो!

उमड़-घुमड़ नभ आते तुझसे मिलने,
लटें घुँघराली पुकारती हैं आकाश से,
नभ मंडल गूंजित करती आवाज से,

नभ की गर्जना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!

मंद मंद फाहा सी गिर रही बूंदे नभ से,
कण कण धरा की भीग रहे हैं बूंदों से,
तुम भी पीड़ हृदय के बूंदों संग धो लो,

नभ की साधना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!

है वो कौन सी पीड़ जो है नभ से भारी,
नभ नीर से सागर की प्यास बुझ जाती,
विचर रही नभ यहाँ भिगोने तुमको ही,

नभ की वेदना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!

उधर लताओं संग भीग रहे हैं पत्ते पत्ते,
फूल भीगी संग सारे कलियाँ भी भींगे,
नभवृष्टि प्रेम में हृदय के तार तार भींगे,

नभ की प्रेमलीला सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!