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Sunday 3 September 2017

नवव्याहिता

रिवाजों में घिरी, नव व्याहिता की बेसब्र सी वो घड़ी!
उत्सुकता भड़ी, चहलकदमी करती बेसब्र सी वो परी!

नव ड्योड़ी पर, उत्सुक सा वो हृदय!
मानो ढूंढ़ती हो आँखें, जीवन का कोई आशय!
प्रश्न कई अनुत्तरित, मन में कितने ही संशय!
थोड़ी सी घबड़ाहट, थोड़ा सा भय!

दुविधा भड़ी, नजरों से कुछ टटोलती बेसब्र सी वो परी!

कैसी है ये दीवारें, है कैसा यह निलय?
कैसे जीत पाऊँगी, यहाँ इन अंजानों के हृदय?
अंजानी सी ये नगरी, जहाँ पाना है प्रश्रय!
क्या बींध पाऊँगी, मैं साजन का हिय?

दहलीज खड़ी,  मन ही मन सोचती बेसब्र सी वो परी!

छूटे स्नेह के बंधन, हुए हम पत्थर हृदय?
इतर बाबुल के घर, अब अन्यत्र मेरा है आलय!
ये किस बस्ती में मुझको ले आया है समय!
अंजाने चेहरों से क्युँ लगता है भय!

रिवाजों में घिरी, नव व्याहिता की बेसब्र सी वो घड़ी!
उत्सुकता भड़ी, चहलकदमी करती बेसब्र सी वो परी!

Monday 5 September 2016

ऐ परी

खूबसूरत सी ऐ परी, तू जुदा कभी मुझ से न होना.....

फासलों से तुम यूॅ न गुजरना,
ये फासले रास न आएंगे तुझको,
कुछ कदम साथ इस जिन्दगी के भी चलना,
राहत के कुछ पल साथ मेरे जी लेना।

खूबसूरत सी ऐ परी, तू गुमशुदा खुद से न होना.....

इन फासलों में है जीवन के अंधेरे,
राहों के शूल चुभ जाएंगे पावों में तेरे,
कुछ रौशनी में इस जिन्दगी के भी चलना,
उजाले यादों के इन आँखों में भर लेना।

खूबसूरत सी ऐ परी, तू नाराज खुद से न होना...
साया बने तू मेरी ऐ परी, जुदा कभी मुझसे न होना.....

Friday 27 May 2016

वो चाय जो आदत बन गई

वो लजीज एक प्याली चाय जो अब आदत बन गई.....

सुबह की मंद बयार तन को सहलती जब,
अलसाई नींद संग बदन हाथ पाँव फैलाते तब,
अधखुले पलकों में उभरती तभी एक छवि,
चाय की प्याली हाथों में ले जैसे सामने कोई परी,
स्नेहमई मूरत चाय संग प्यार छलकाती रही,

वो लजीज एक प्याली चाय जो अब आदत बन गई.....

चाय की वो चंद बूँदें लगते अमृत की धार से,
एहसास दिलाते जैसे छलके हो मदिरा उन आँखों से,
सिंदुरी मांग सी प्यारी रंग दमकती उन प्यालों में,
चूड़ियों की खनखन के संग चाय लिए उन हाथों में,
अलबेली मूरत वो मन को सदा लुभाती रही,

वो लजीज एक प्याली चाय जो अब आदत बन गई.....

सांझ ढ़ले फिर कह उठते वो चाय के प्याले,
कुछ फुर्सत के मदहोश क्षण संग मेरे तू और बीता ले,
जहाँ बस मैं हुँ, तुम हो और हो नैन वही दो मतवाले,
तेरी व्यथा कब समझेंगे हृदयविहीन ये जग वाले,
मनमोहिनी सूरत वो चाय संग तुझे पुकारती,

वो लजीज एक प्याली चाय जो अब आदत बन गई.....