Showing posts with label पहरे. Show all posts
Showing posts with label पहरे. Show all posts

Thursday, 25 January 2024

ऋतुओं के पहरे

लम्हों पर, ऋतुओं के पहरे,
वो, कब ठहरे!
रख छोड़े हमने, कुछ ख्वाब अधूरे...

इक आए, इक जाए,
देखे ऋतुओं के, नित रूप नए,
अब कौन, उन्हें समझाए,
सरमाए, ख्वाबों के,
हों, कब पूरे!

रख छोड़े हमने, कुछ ख्वाब अधूरे...

संशय में, पल सारे!
बदलते से, ऋतुओं संग गुजारे,
चलन रहा, यही सदियों,
ख्वाबों के, वो तारे,
रहे, बे-सहारे!

रख छोड़े हमने, कुछ ख्वाब अधूरे...

है इक, दग्ध हृदय,
संदिग्ध सा, उधर, इक वलय,
रोके, वो कब रुक पाए,
धार सा, बहा जाए,
वो, लम्हे सारे!

लम्हों पर, ऋतुओं के पहरे,
वो, कब ठहरे!
रख छोड़े हमने, कुछ ख्वाब अधूरे..

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 20 December 2020

कोहरे

धुंधले ये कोहरे हैं, या दामन के हैं घेरे,
रुपहली क्षितिज है, या रुपहले से हैं चेहरे,
ठंढ़ी पवन है, या हैं सर्द आहों के डेरे,
सिहरन सी है, तन-मन में,
इक तस्वीर उभर आई है, कोहरों में!

सजल ये दो नैन हैं, या हैं बूंदों के डेरे,
वो आँचल हैं ढ़लके से, या हैं बादल घनेरे,
वो है चिलमन, या हैं हल्के से कोहरे,
हलचल सी है, तन-मन में,
वही रंगत उभर आई है, कोहरों में!

उसी ने, रंग अपने, फलक पर बिखेरे,
रंगत में उसी की, ढ़लने लगे अब ये सवेरे,
वो सारे रंग, जन्नत के, उसी ने उकेरे,
छुवन वो ही है, तन-मन में,
वही चाहत उभर आई है, कोहरों में!

बुनकर कोई धागे, कोई गिनता है घेरे,
चुन कर कई लम्हे, कोई संग लेता है फेरे,
किसी की रात, किन्हीं यादों में गुजरे,
कोई बन्धन है, तन-मन में,
इक तावीर उभर आई है, कोहरों में!

धुंधले ये कोहरे हैं, या दामन के हैं घेरे,
रुपहली क्षितिज है, या रुपहले से हैं चेहरे,
ठंढ़ी पवन है, या हैं सर्द आहों के डेरे,
सिहरन सी है, तन-मन में, 
इक तस्वीर उभर आई है, कोहरों में!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)