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Friday 15 April 2016

तन्हाई के ख्याल

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

ख्यालों के निर्झर सरिता मे वो बहती,
कलकल छलछल पलपल हरपल वो करती,
जाने किन शिखरों से चलकर वो आती,
झिलमिल सांझ ढ़ले किस सागर में मिल जाती,
ख्यालों के विरान महल में बस मैं और मेरी तन्हाई।

टकराती रह रह कर हृदय के इस तट पर,
शिलाओं सा टूटता रहता मैं तिल तिल घिस-घिस कर,
यादों के सैकत बिछ जाते हृदय के तल पर,
गहरा सा मन मेरा शिलाचूर्ण से फिर जाता भर,
कभी रुक जाते वो झील सी ख्यालों में बह बहकर।

खिल उठती कमल सी वो उस ठहरी झील मे,
समेटती अपनी चंचलता पलभर को अपने मन में,
बिखेरती वो सुंदर सी आभा उस उपवन में,
सपनों का वो घन सदियों से मेरे मन प्रांगण में,
इक ख्याल बन कर उभरता हर पल मेरी तन्हाई में।

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

Tuesday 16 February 2016

जब जब तुम मिले

सांझ ढ़ले सुरमई बातों के सिलसिले,
मधुमई आवाज की उन गाँवों में हम चले,
चाँद मे नहाई सी रात अब साथ ढ़ले।

रात ढ़ले छुईमुई सी यादों के सिलसिले,
अन्तस्थ हृदय की उन धड़कनों से हम मिले,
अन्तर में कुम्हलाई सी अब याद ढ़ले।

जीवनदीप ढ़ले मधुमई यादों के सिलसिले,
मधुप्रीत की इस नैया मे तुम संग कुछ देर चले,
मनप्रांगण खिल आई जब जब तुम मिले।

Tuesday 9 February 2016

रुको, तुम रुक जाओ इस आंगन में!

रूको! अभी मत जाओ, तुम रुक ही जाओ इस आंगन में।

जीवन की इस संकुचित निशा प्रहर में,
मिले हो भाग्य से तुम इस भटकी दिशा प्रहर में,
संजोये थे हमने अरमान कई उस प्रात प्रहर में,
बीत रहा ये निशा प्रहर एकाकी मन प्रांगण में,

रूको! अभी मत जाओ, तुम रुक ही जाओ इस आंगन में।

कहनी है बातें कई तुमसे अपने मन की,
संकुचित निशा प्रहर अब रोक रही राहें मन की,
चंद घड़ी ही छूटीं थी फुलझरियाँ इस मन की,
सीमित रजनी कंपन ही क्या मेरे भाग्य परिधि में?

रूको! अभी मत जाओ, तुम रुक ही जाओ इस आंगन में।

मेरी अधरों से जो सुनती तुम निशा वाणी,
मुखरित अधर पुट तेरे भी कहते कोई प्रणय कहानी,
कुछ संकोच भरे पल कुछ संकुचित हलचल,
ये पल मुमकिन भी क्या मेरे इस लघु जीवन में?

रूको! अभी मत जाओ, तुम रुक ही जाओ इस आंगन में।

शिथिल हो रहीं सांसें इस निशा प्रहर में,
कांत हो रहा मन देख तारों को नभ की बाँहों में,
निशा रजनी डूब रही चांदनी की मदिरा में,
प्रिय मैं भूला-भुला सा हूँ तेरे यादों की गलियों में,

रूको! अभी मत जाओ, तुम रुक ही जाओ इस आंगन में।