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Tuesday, 1 June 2021

तसल्ली

दिल को, तसल्ली थोड़ी सी,
मैंने, दी तो थी,
अभी,
कल ही!

पर ये जिद पर अड़ा, रूठ कर पड़ा,
बेवजह, दूर वो खड़ा,
किसी की, चाह में,
उसी राह में,
बेवजह, इक अनबुने से ख्याल में!

कोई मूर्त हो, तो, ला भी दूँ, मैं भला,
पर, अमूर्त कब मिला!
अजीब सी चाह है,
इक प्रवाह है,
बेवजह, बहल रहा, उस प्रवाह में!

करे वो कैसे, इक सत्य का सामना,
जब, प्रबल हो कामना,
बुने, कोई उधेड़बुन, 
छेड़े वही धुन,
वो ही गीत, खुद सुने, एकान्त में!

दिल को, तसल्ली थोड़ी सी,
मैंने, दी तो थी,
अभी,
कल ही!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday, 9 December 2020

शिकवा

शिकवा ही सही, कुछ तो कह जाते!
तुम जो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!

करते गर, तुम शिकायत,
निकाल लेते, मन की भड़ास सारी!
जान पाता, मैं वजह,
पर, बेवजह, 
इक धुँध में खो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!

डिग चला, विश्वास थोड़ा,
अपनाया जिसे, क्यूँ, उसी ने छोड़ा!
उजाड़ कर, इक बसेरा,
ढूंढ़ते, सवेरा,
इक राह में खो गए, बिन कुछ कहे,
खल गई, बात कुछ!

बेहतर था, मिटा लेते शिकायतें सारी,
सुनी तुमने नहीं, मिन्नतें मेरी,
खल गई, बात कुछ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday, 18 July 2018

वजह ढूंढ लें

जीने की कुछ तो वजह होगी,
बेवजह ये साँसे न यूं ही चली होंगी,
न सीने में दर्द यूं ही जगा होगा,
ये आँसू न यूं ही आँखों मे भरा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

नैन बेचैन रहते हैं क्यूं रातभर,
दूर अपना कोई उनसे तो रहा होगा,
नीर नैनों से न यूं ही बहे होंगे,
नैनों से उस ने कुछ तो कहा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
चलो वजह वही हम ढूंढ लें.....

न यूं ही सजी होंगी ये वादियां,
ये पर्वत यूं ही एकाकी न हुआ होगा,
बर्फ शीष पर यूं ही न जमे होंगे,
धार बनकर नदी यूं ही न बही होगी,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

विहँसती हैं धूप में क्यूं पत्तियां,
पत्तियों का बदन भी तो जला होगा,
खिलते हैं हँसकर ये फूल क्यूं,
ये कांटा फूलों को भी तो चुभा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
चलो वजह वही हम ढूंढ लें.....

जीने की कुछ तो वजह होगी,
बेवजह न उभर आया होगा रास्ता,
कुछ कदम कोई तो चला होगा,
अकेला सारी उम्र न कोई रहा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

Tuesday, 17 July 2018

गुनगुनाती पवन

है वजह कोई या यूं ही बेवजह!
ओ रे सजन, गुनगुनाने लगी है फिर ये पवन....

कुछ तुमने कहा!
या कोई शिकायत हुई?
सुनाने लगी है क्या ये पवन?
कुछ गुनगुनाने लगी है क्यूं ये पवन?

है कौन सा राग?
या सोया कोई अनुराग,
जगाने लगी है अब ये सजन,
क्यूं गीत कोई गाने लगी है ये पवन?

ये है बैरी पवन,
सुने ना ये मेरी सजन,
बेवजह छेड़ जाए ये मेरा मन,
उलझन भरे गीत गाए क्यूं ये पवन?

ये कैसी है चुभन,
क्यूं छुए है मुझको पवन,
विरह में जलाए क्यूं ये बदन?
गीत विरहा के गाए है क्यूं ये पवन?

कुछ भीगी है ये,
जरा सी बहकी है ये,
भिगोए है बूंदो से ये मेरा तन,
गीत बरखा के गाए है क्यूं ये पवन?

है कोई वजह,
या यूं ही बेवजह,
सताने लगी है फिर ये पवन,
नया गीत कोई गाने लगी है ये सजन!

है वजह कोई या बेवजह!
ओ रे सजन, गुनगुनाने लगी है फिर ये पवन....