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Tuesday, 1 June 2021

तसल्ली

दिल को, तसल्ली थोड़ी सी,
मैंने, दी तो थी,
अभी,
कल ही!

पर ये जिद पर अड़ा, रूठ कर पड़ा,
बेवजह, दूर वो खड़ा,
किसी की, चाह में,
उसी राह में,
बेवजह, इक अनबुने से ख्याल में!

कोई मूर्त हो, तो, ला भी दूँ, मैं भला,
पर, अमूर्त कब मिला!
अजीब सी चाह है,
इक प्रवाह है,
बेवजह, बहल रहा, उस प्रवाह में!

करे वो कैसे, इक सत्य का सामना,
जब, प्रबल हो कामना,
बुने, कोई उधेड़बुन, 
छेड़े वही धुन,
वो ही गीत, खुद सुने, एकान्त में!

दिल को, तसल्ली थोड़ी सी,
मैंने, दी तो थी,
अभी,
कल ही!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)