Showing posts with label शकल. Show all posts
Showing posts with label शकल. Show all posts

Tuesday 22 March 2016

एहसास एक गहराता हर पल

एहसास एक गहराता हर पल,
निर्जन तालाब में जैसे ठहरा शांत जल,
खामोशी टूटती तभी जब फेकता कोई कंकड़।

कभी कभी ये एहसास उठते मचल,
वियावान व्योम मे जैसे घुमरता मंडराता बादल,
खामोशी टूटती है तभी जब लहराता उसका आँचल।

एहसासों के पर कभी आते निकल,
तेज हवा के झौंकों मे जैसे पत्तियों के स्वर,
खामोशी टूटती है तभी जब छा जाता है पतझड़।

आशाएँ एहसास की कितनी विकल,
सपनों की नई दुनियाँ मे रोज ही आता निकल,
खामोशी टूटती है तभी जब बिखरते सपनों के शकल।

एहसास एक गहराता हर पल........,!