मन मानस पर, छाई, इक परछाईं सी,
पलकों पर अंकित, धुंधलाई, इक तस्वीर,
जेहन पर, गहराता, इक अक्स,
अंजाना सा.....
जैसे, बिन पूछे,
इक परदेसी, आ बैठा हो आंगन,
सूने से पर्वत पर, घिर आया हो घन,
बदली, ले आया हो सावन,
बूंदों की छमछम से, मन,
दीवाना सा.....
जेहन पर, गहराता, इक अक्स,
अंजाना सा.....
कोई, क्या जाने,
हलचल, क्यूं , सागर के तट पर,
सदियों, इक खामोशी क्यूं पर्वत पर,
बूंदें, क्यूं उस बदली में गौन,
अन्तःमन, क्यूं इतना मौन,
बेगाना सा .....
जेहन पर, गहराता, इक अक्स,
अंजाना सा.....
जाने, है कैसा,
अंजाने धागों का, यह गठबंधन,
पल-पल, अजीब सा इक आकर्षण,
परछाईं से, बढ़ता अपनापन,
हर ओर, गहराता सूनापन,
सुहाना सा .....
मन मानस पर, छाई, इक परछाईं सी,
पलकों पर अंकित, धुंधलाई, इक तस्वीर,
जेहन पर, गहराता, इक अक्स,
अंजाना सा.....
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