Tuesday, 2 February 2016

अधुरी पूजा उसकी

उजड़ गया संसार उसका,
बिछड़ गया एतबार जीवन का,
छूट गई हाथों से आशा की पतवार,
मन की गहराई के पार दफन हो गया,
वो छोटा सा मोहक संसार।

छोड़ गई दामन वो उसका,
देवतुल्य था जो उसके जीवन में,
टूट चुका है आज वो देव भी,
वर्जनाओं को तोड़ हाथ जिसने थामा था,
शायद वो निष्ठुर स्वार्थी ही थी,
क्षितिज पार जाने की उसको जल्दी थी,
रह गई अब शेष यादें ही।

पर उस दुखिया का भी दोष क्या,
शायद भाग्य उस देवता का ही खोटा था,
दामन उस दुखिया का भी तो लूटा था,
प्राणों से प्यारा उसके पीछे भी तो कोई छूटा था,
आराधना में उस देवतुल्य मानव की,
जीवन अर्पण कर दी थी उसने।

हे ईश्वर, देख पाऊँगा मै कैसे उस देव को,
पूजा ही जिसकी उससे रूठी हो,
लुट चुका संसार खुद उस देवता का,
जिसकी पूजा ही खंडित-खंडित हो।

(दिनांक 01.02.2016 को मेरे प्रिय विनय भैया से ईश्वर ने भाभी को छीन लिया। बचपन से मैने उस खूबसूरत जोड़ी को निहारा है और छाँव महसूस भी की। उनके विछोह से आज मन भर आया है, एक संसार आज आँखों के सामने उजाड़ हुआ बिखरा पड़ा है। हे ईश्ववर, यह लीला क्यों? यह पूजा अधूरी क्यों? यह संगीत अधूरा क्यों?)

अनकहे मौन

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

मौन सृष्टि का परिचायक,
मौन वाणी वसुधा की,
मौन कंठ वेदना के,
मौन स्वर साधक के,

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

अनसुने स्वर मौन की,
घुट रहे अब अंदर ही अंदर,
बिखर गए स्वर लहरी ये,
सृष्टि की मन के अंदर।

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

नैन मौन बहते आँसू बन,
हृदय पीड़ सहता मौन बन,
मौन खड़ी पर्वत पीड़ बन,
मौन रमता बालक के मन।

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

ग्यान साधक के अन्दर मौन,
अग्यानी दूर सोचता मौन,
उत्कंठा, जिग्यासा मौन,
घट घट में व्याप्त मौन,

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

मौन ईश्वर के स्वर,
मौन प्राणों के प्रस्वर,
मौन मृत्यु के आस्वर,
मौन दृष्टि उस महाकाल की।

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

तोहफा-ए-दीदार

दीदार-ए-तोहफा वो दे गया,
मेरा जीवन मुझको ही छल गया।
जिन्दगी मिली चंद पलों की,
यादों मे जीवन का हर पल गया।

खुश्बु-ए-दीदार फैली हर तरफ,
सिलसिला फसानों का कम हुआ,
तैरती रही नींद में परछाईं सी,
अब तो दीदार-ए-स्वप्न ही रह गया।

ए जिन्दगी तू फिर से सँवर,
छल न तू मुझको मुझ संग गुजर,
दे तोहफा-ए-दीदार के भँवर,
पल जीवन के इनमें ही जाए गुजर।

Monday, 1 February 2016

आसमाँ का रात्रिजश्न

 दौरे-ए-जश्न मन रहा आसमाँ पे आज रात,
 मद्धिम सी रौशनी छाई नभ पे आज रात,
सितारों का मंद कारवाँ दे रहा मस्त साथ।

निखर गया है आसमाँ चाँदनी की नूर से,
बिखर गई है खुशबु  केवड़े की सुरूर से,
धड़क रहे रात के हृदय रौशनी की नूर से।

चाँद प्रखरित हो रहा मिल के आसमाँ से,
रात मुखरित हो रहा दिल की दास्तान से,
आतुर मिलन को हो रहे दोनो आसमाँ में।

मचल रहे है जज्बात सितारों के नभ संग,
टपक रही है मदिरा ओस की बूँदों के संग,
दौर ए जश्न चलता रहा यूँ सारी रात संग।

कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

पत्थर सा हृदय,
पाषाण सी शिथिल सोच,
शांत दरिया सा अवरुद्ध दिल,
मस्तिष्क निरापद व्यवहार निरंकुश,
मानवीय संवेदनाएँ जाए तो जाए किधर?

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

संवेदनाएँ संकुचित,
सोच विषाद में कलुषित,
भावनाएँ काँटों से कटंकित,
विचारधारा अस्पष्ट मन आहत,
इंसानी वेदनाएँ जाए तो जाए किधर?

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

वेदनाएँ स्वयं व्यथित,
पीड़ा व्यथा से भी भारी,
दुविधाएँ मन की अंतहीन विकट,
चट्टानी आग सी तपती झुलसाती तपिश,
यातनाओं में चेतनाएँ जाएँ तो जाएँ किधर?

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

फागुन रंग शिशिर संग

फागुन रंग शिशिर संग छाया,
सरस रस घट भर रंग लाया,
सजनी का उर अति हर्षाया,
सरस शिशिर सृष्टि पर लहराया।

जीर्ण आवरण उतरे वृक्षों के,
श्रृंगार कोमल पल्लव से करके,
सुशोभित कण-कण वसुधा के,
मनभावन शिशिर आज मदमाया।

हर्षित मुखरित सृष्टि के क्षण,
मधुरित धरा का कण-कण,
मधुर रसास्वाद का आलिंगण,
शिशिर अमृत रस भर ले अाया।

डाल-डाल फूलों से कुसुमित,
पेड़ तृण मूल फसल आनंदित,
मुखरित पल्लवित हरित हरित,
सरस कुसुम पल्लव मन को भाया।

जीवन तरंग

तरंगे उठती शहनाई बन,
हृदय की व्याकुल अंगड़ाई बन,
नव कलियों की तरूणाई बन,
चंचल चित की चतुराई बन,
भोर की प्रथम किरणों के संग।

तुम तरंगों पर चलकर आते,
नव प्रभात बन नवजीवन लाते,
हृदय मध्य मृदंग बज उठते,
जीवन स्वप्न सम विस्तृत हो जाते,
धवल किरणों की नवराग सुनाते।

तुम संगी एकाकीपन के,
तुम राग विहाग सुंदर जीवन के,
तरुणाई की नव अंगड़ाई तुम,
तुम प्रहरी मानस पटल के,
प्रखर तेजस्व जीवन अनुराग तुम ।