प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!
पत्थर सा हृदय,
पाषाण सी शिथिल सोच,
शांत दरिया सा अवरुद्ध दिल,
मस्तिष्क निरापद व्यवहार निरंकुश,
मानवीय संवेदनाएँ जाए तो जाए किधर?
प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!
संवेदनाएँ संकुचित,
सोच विषाद में कलुषित,
भावनाएँ काँटों से कटंकित,
विचारधारा अस्पष्ट मन आहत,
इंसानी वेदनाएँ जाए तो जाए किधर?
प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!
वेदनाएँ स्वयं व्यथित,
पीड़ा व्यथा से भी भारी,
दुविधाएँ मन की अंतहीन विकट,
चट्टानी आग सी तपती झुलसाती तपिश,
यातनाओं में चेतनाएँ जाएँ तो जाएँ किधर?
प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!
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