छलकती हैं आँखों की देहरी पर नीर,
क्षण विदाई की घड़ियाँ के देती मन को चीर,
झरते हैं नैंनों से आँसू निर्झर सी रह रह,
नभ से झरते ओस की बूंदो की तरह।
क्षण अति कारुणामय होता है वह,
बिछड़ते मात, पिता, भाई बहन, बन्धु जब,
फफक फफक रो पड़ता हृदय तब,
देहरी बदल जाती जीवन की इस तरह।
विदाई नही सिर्फ एक जन की यह,
छूट जाते हैं रिश्ते, नाते, पड़ेसी, कुटुम्ब सब,
टीस दिलों की और बढ़ जाती तब,
टीस दिलों की और बढ़ जाती तब,
नैन नीर अधीर हो बहती निर्झर की तरह।