जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Friday, 19 February 2016
ये बेचारा दिल
ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर जिन्दगी की राहों मे न आपसे मिला होता,
फलसफे चुन चुन कर रुशवाईयों के,
कागजों पे न आज लिख रहा होता।
ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर सादगी पे आपकी ये न मर मिटा होता,
समुन्दर की बार बार उठती लहरों से,
पता आपका न आज पूछ रहा होता।
ये अपना दिल न होता बेचारा,
गर रूह की गहराईयों में न आपको बिठाया होता,
चूर चूर हो चुके इस दिल के हर टुकड़े से,
नाम आपका ही न आ रहा होता।
जननी जन्मभूमि भारत
जननी जन्मभूमि हूँ मैं,
आहत हूँ थोड़ी सी, थोड़ी विचलित हूँ मैं,
सदियों से कुठाराघात कई दुश्मनों के सह चुकी हूँ मैं,
टूटी नहीं अभी तक संघर्षरत हूँ मैं।
भारत की माता हूँ मैं!
जानती हूँ सदियों से हमपे जुल्म कई होते रहे,
गोलियों से मेरे वीर सपूतों के हृदय छलनी होते रहे,
पर आहूति देकर ये, रक्षा मेरी करते रहे।
कर्मवीरों की धरती हूँ मैं!
अभिमान हूँ कोटि कोटि हृदयस्थ जलते दीप की,
गौरव हूँ मैं जन जन के संगीत की,
बिखरूंगी लय नई बन, विश्वविजय गीत की।
जननी जन्मभूमि हूँ मैं, भारत माता हूँ मैं।
Thursday, 18 February 2016
तिरंगा शिरमौर भारत की शान
शिरमौर भारत की मान-सम्मान-गौरव सुरक्षा,
लेनी अब अपनी हाथों में हमें!
वो दुश्मन गद्दार है जो कहता,
भारत मेरा देश नहीं,
मैं कहता सरजमीं-ए-भारत,
स्वाभिमान है मेरा,कोई खेल नहीं!
गद्दार हैं वो! जिनके दिल,
सरजमीं-ए-हिंदुस्तान में रहते नहीं,
युगों- युगों से जयचन्द जैसे,
गद्दारों की इस देश में चली नही।
शिरोधार्य शिरमौर देश का स्वाभिमान हमें,
अरमानों की बलि देकर,
इसकी रक्षा करनी होगी हमें,
तिरंगे की शान मे बर्दाश्त न होगी गुस्ताखी हमें,
देश द्रोही अफजल जैसे गद्दारों के,
सर कलम करनी होगी हमें।
शिरमौर भारत की मान-सम्मान-गौरव सुरक्षा,
अब लेनी अपनी हाथों में हमें!
सपनों के भारत को लगी नजर
मेरे सपनों के भारत को लग गई किसकी नजर?
सोंच हो चुकी है दूषित आज सत्तालोलुपों की,
सत्ता के भूखे उस महा दानव की,
साधते स्वार्थ अपना रोपकर वृक्ष वैमनस्य की।
महादानव हैं वो पर दाँत नही दिखते उसके,
खतरनाक विषधर विष भरे सोंच उनके,
दूषित कर देते ये सोंचविचार निरीह भोले मानस के।
चंद पैसों की खातिर बिक जाते यहाँ ईमान,
देश समाज धर्म का फिर कहाँ ध्यान,
आम जन मरे या जले, बढ़ता रहे इनका सम्मान।
सत्ता लोलुपता इनकी देशभक्ति से ऊपर,
देश की बदहाली, दुर्दशा से ये बेखबर,
खुशहाल आवो हवा को लग गई इनकी बुरी नजर।
मेरे सपनों के भारत को लग गई किसकी नजर?
Wednesday, 17 February 2016
गौरैय्या तू चुप क्युँ?
गौरैय्या रे तू आज चुप क्युँ,
मौन तोड़ कुछ कह दे तू,
क्या हुआ जो रूठ गया वो,
संगा संबंधी था छोड़ गया वो।
छोटी सी तो दुनिया है तेरी,
सुख और दुख दोनो तेरे साथी,
जीवन संगी के संग प्रीत लगा तू,
बहाने खुशी के ढूंढ़ नया तू।
तिनके नए पुराने तू चुन ले,
बसेरा सुन्दर सा तू बुन ले,
चीं चीं वाणी मे तू गाता जा,
नए दोस्त संबंधी तू बनाता जा।
गुलशन मंद तेरी वाणी बिन,
झुरमुट उदास तेरी चीं चीं बिन,
मेरी मन में तू इक आस जगा,
गौरैय्या तू चुप क्युँ गीत कोई गा।
देश की दुर्दशा
चैतन्य चित्त का चंचल चेतक,
हिनहिना रहा आज चित्त के भीतर,
आकुल प्राण आज उस कर्मवीर के ,
सहम रहा देश की विवशता पर।
चेतक है वो जानता कर्म करना,
निष्ठा कर्म की रक्षा में सर्वस्व झौंकना,
सजल हुए नैन आज उस चेतक के,
रो रहा देश की बिखरती दशा पर।
जान न्योछावर की थी उस चेतक ने,
अपनी राणा और मेवाड़ की अधिरक्षा मे,
चैतन्य चित्त चिंतित आज उस चेतक के,
हिनहिनाता देश की दुर्दशा पर।
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