इक आह भरता हूं, किश्तों में प्रवाह लिखता हूं.....
मैं अनन्त पथ गामी,
घायल हूं पथ के निर्मम कांटों से,
पथ के कंटक चुनता हूं,
पांवों के छालों संग,
अनन्त पथ चल पड़ता हूं,
राहों के कई अनुभव,
मन में रख लेता हूं यूं सहेजकर,
छाले गिन-गिन कर,
किश्तों में मन के प्रवाह लिखता हूं......
भाव-प्रवन मेरा मन,
प्लावित होता है कोमल भावों से,
भावों में बह जाता हूं,
खुद होता हूं बेसुध,
फिर लहरों में गोते खाता हूं,
अनुभव के कोरे पन्ने,
भर लेता हूं उन लहरों से चुनकर,
कुछ भीगे शब्दों से,
किश्तों में मन के प्रवाह लिखता हूं......
है अनथक प्रवाह यह,
गुजरा हूं कितनी दुर्गम राहों से,
घाट-घाट धो देता हूं,
मलीन मन लेकर,
सम्मुख सागर के हो लेता हूं,
छूट चुकी हैं जो राहें,
बरबस देखता हूं मैं मुड़-मुड़कर,
यादों के उस घन से,
किश्तों में मन के प्रवाह लिखता हूं......
इक आह भरता हूं, किश्तों में प्रवाह लिखता हूं.....
मैं अनन्त पथ गामी,
घायल हूं पथ के निर्मम कांटों से,
पथ के कंटक चुनता हूं,
पांवों के छालों संग,
अनन्त पथ चल पड़ता हूं,
राहों के कई अनुभव,
मन में रख लेता हूं यूं सहेजकर,
छाले गिन-गिन कर,
किश्तों में मन के प्रवाह लिखता हूं......
भाव-प्रवन मेरा मन,
प्लावित होता है कोमल भावों से,
भावों में बह जाता हूं,
खुद होता हूं बेसुध,
फिर लहरों में गोते खाता हूं,
अनुभव के कोरे पन्ने,
भर लेता हूं उन लहरों से चुनकर,
कुछ भीगे शब्दों से,
किश्तों में मन के प्रवाह लिखता हूं......
है अनथक प्रवाह यह,
गुजरा हूं कितनी दुर्गम राहों से,
घाट-घाट धो देता हूं,
मलीन मन लेकर,
सम्मुख सागर के हो लेता हूं,
छूट चुकी हैं जो राहें,
बरबस देखता हूं मैं मुड़-मुड़कर,
यादों के उस घन से,
किश्तों में मन के प्रवाह लिखता हूं......
इक आह भरता हूं, किश्तों में प्रवाह लिखता हूं.....
No comments:
Post a Comment