प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
सुकून सा कोई, मिला है हर मौसम,
न ही गर्मी है, न ही झुलसती धूप,
न ही हवाओं में, है कोई दहकती जलन...
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
कोई नर्म छाँव, लेकर आया हो जैसे,
घन से बरसी हों, बूंदों की ठंढ़क,
रेतीली राहों में, कम है पाँवों की तपन....
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
चल पड़ता हूं मैं गहरे से मझधार में,
भँवर कई, उठते हों जिस धार में,
है बस चाहों में, इक साहिल की लगन....
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
हाँ! ये तपिश, पल-पल होती है कम,
है ऐसा ही, ये प्रणय का मौसम,
इस रिमझिम में, यूं भीगोता हूं मैं बदन.....
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
सुकून सा कोई, मिला है हर मौसम,
न ही गर्मी है, न ही झुलसती धूप,
न ही हवाओं में, है कोई दहकती जलन...
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
कोई नर्म छाँव, लेकर आया हो जैसे,
घन से बरसी हों, बूंदों की ठंढ़क,
रेतीली राहों में, कम है पाँवों की तपन....
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
चल पड़ता हूं मैं गहरे से मझधार में,
भँवर कई, उठते हों जिस धार में,
है बस चाहों में, इक साहिल की लगन....
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
हाँ! ये तपिश, पल-पल होती है कम,
है ऐसा ही, ये प्रणय का मौसम,
इस रिमझिम में, यूं भीगोता हूं मैं बदन.....
प्रणय की फुहार में, जब भी भीगा है ये मन .....
No comments:
Post a Comment