Tuesday 18 February 2020

चुप हो क्यूँ?

लो डुबकियाँ,
हो रहा बेजार, ये मझधार है!

जीवन, जिन्दगी में खो रहा कहीं,
मानव, आदमी में सो रहा कहीं, 
फर्क, भेड़िये और इन्सान में अब है कहाँ?
कहीं, श्मसान में गुम है ये जहां, 
बिलखती माँ, लुट चुकी है बेटियाँ, 
हैरान हूँ, अब तक हैवान जिन्दा हैं यहाँ!
अट्टहास करते हैं वो!
तुम चुप हो क्यूँ?

लो चुटकियाँ, 
हो रहा बेकार, नव-श्रृंगार है!

सत्य, कंदराओं में खोया है कहीं,
असत्य, यूँ प्रभावी होता नही!
फर्क, अंधेरों और उजालों में अब है कहाँ?
जंगलों में, दीप जलते हैं कहाँ,
सुलगती आग है, उमरता है धुआँ,
जिन्दा जान, तड़पते जल जाते हैं यहाँ!
तमाशा, देखते हैं वो!
तुम चुप हो क्यूँ?

लो फिरकियाँ, 
हो रहा बेजार, ये उपहार है!

भँवर, इन नदियों में उठते हैं यूँ ही,
लहर, समुन्दरों में यूँ डूबते नहीं,
फर्क, तेज अंधरो के, उठने से पड़ते कहाँ!
इक क्षण, झुक जाती हैं शाखें,
अगले ही क्षण, उठ खड़ी होती यहाँ,
निस्तेज होकर, गुजर जाती हैं आँधियां!
सम्हल ही जाते हैं वो!
तुम चुप हो क्यूँ?

लो डुबकियाँ,
हो रहा बेजार, ये मझधार है!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 18 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. आदरणीय सर सादर प्रणाम।
    सटीक प्रश्न उठाए हैं आपकी पंक्तियों ने जिसका उत्तर यदि मिल जाता तो समय की कई उलझनें सुलझ जाती।
    लाजवाब सृजन। बहुत खूब लिखा आपने।
    सुप्रभात।

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-02-2020) को    "नीम की छाँव"  (चर्चा अंक-3616)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    ReplyDelete
  4. सत्य, कंदराओं में खोया है कहीं,
    असत्य, यूँ प्रभावी होता नही!
    फर्क, अंधेरों और उजालों में अब है कहाँ?
    जंगलों में, दीप जलते हैं कहाँ, वाह! बहुत ही बेहतरीन रचना आदरणीय 👌

    ReplyDelete
  5. लाजवाब लेखन अंतर तक छूता हुवा सटीक और सीधा प्रहार करता सत्य।

    ReplyDelete
  6. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  7. सत्य, कंदराओं में खोया है कहीं,
    असत्य, यूँ प्रभावी होता नही!... वाह पुरुषेत्तम जी क्या खूूूब ल‍िखा है

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय अलकनंदा जी। ब्लॉग पर सुंदर टिप्पणी हेतु धन्यवाद ।

      Delete
  8. बेहद गहरे भाव समटे सुंदर ,सादर नमन

    ReplyDelete
  9. Dost- I don’t have the skills to properly express my application- but in plain words amazingly good! Context is sad, but true!

    ReplyDelete