Tuesday, 13 April 2021

गैर लगे मन

दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!

गैर लगे, अपना ही मन,
हारे, हर क्षण,
बिसारे, राह निहारे,
करे क्या!
देखे, रुक-रुक वो!

दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!

तन्हा पल, काटे न कटे,
जागे, नैन थके,
भटके, रैन गुजारे,
करे क्या!
ताके, तेरा पथ वो!

दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!

इक बेचारा, तन्हा तारा,
गगन से, हारा,
पराया, जग सारा,
करे क्या! 
जागे, गुम-सुम वो!

दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!

संग-संग, तुम होते गर,
तन्हा ये अंबर,
रचा लेते, स्वयंवर,
करे क्या!
हारे, खुद से वो!

दूर कहीं, तुम हो,
जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!


- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

20 comments:

  1. संग-संग, तुम होते गर,
    तन्हा ये अंबर,
    रचा लेते, स्वयंवर,
    करे क्या!
    हारे, खुद से वो!

    दूर कहीं, तुम हो,
    जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो.... बहुत सुंदर रचना बधाई हो आपको आदरणीय 🌷🌹

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-04-2021) को  ""नवसम्वतसर आपका, करे अमंगल दूर"  (चर्चा अंक 4036)  पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    भारतीय नववर्ष, बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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  3. मन विभोर करने वाली रचना, बहुत सुंदर

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. इक बेचारा, तन्हा तारा,
    गगन से, हारा,
    पराया, जग सारा,
    करे क्या!
    जागे, गुम-सुम वो!

    दूर कहीं, तुम हो,
    जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी।

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  6. खूबसूरत पंक्तियाँ,लाजवाब अभिव्यक्ति।
    सादर प्रणाम आदरणीय सर 🙏

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  7. मन की परतों से रिसती है उदासी जैसे रोटी बासी बेहतरीन रचना पुरुषोत्तम सिन्हा जी की
    इक बेचारा, तन्हा तारा,
    गगन से, हारा,
    पराया, जग सारा,
    करे क्या!
    जागे, गुम-सुम वो!

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    1. आपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीय वीरेन्द्र शर्मा जी। हमेशा ही स्वागत है इस पटल पर आपका।

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  8. सुंदर प्रस्तुति

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  10. अनेक तरह से अपने विरह को शब्दों में बांधा है ... खूबसूरती से लिखे एहसास .

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  11. दूर कहीं, तुम हो,
    जैसे, चाँद कहीं, सफर में गुम हो!..ये सुंदर पंक्तियां ही पूरी कविता के मोहपाश में जुड़ने का सुंदर अहसास करा रही हैं,खूबसूरत एवम् भावपूर्ण रचना ।

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  12. हृदयस्पर्शी रचना ..

    चैत्र नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹

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