Wednesday, 27 August 2025

अब जो हुआ


अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....

इन संवेदनाओं को अब, सहेजना होगा,
ढ़ाल कर, कहीं चेतनाओं में,
मूर्त कल्पनाओं में,
भरकर अल्पनाओं में, रखना होगा!

अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....

पल जो हुए कल, रुलाएंगी वो ही कल,
जागते वो ही पल, होंगे मूर्त,
जगाएंगे, व्यर्थ में,
अब जो हैं ये पल, उन्हें सीना होगा!

अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....

अब बिंब हो उठी हैं, समस्त असंवेदना,
सुसुप्त सी हो चली, चेतना,
सहेजे, कौन भला,
अब जो ढ़ल रहा, ये पल न रुकेगा!

अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....

बिखेरेंगे न ये रंग, वेदनाओं के आंगन,
दोहराएंगे, न ये गीत कोई,
अनसुना, सब कहा,
लौट कर, फिर न अब दोहराएगा!

अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....

Tuesday, 19 August 2025

शुक्र है...

शुक्र है, चलो, आए तो तुम!

यूं तो, लगता था,
तृण-विहीन सा है, तेरे एहसासों का वन,
बंजर सा मन,
लताएं, उग ही न पाते हों जिन पर,
जमीं ऐसी कोई!
पर, शुक्र है, उग तो आए एहसास,
इस राह में, 
इक बहार बन, छाए तो तुम!

शुक्र है, चलो, आए तो तुम!

यूं, बोल पड़ी, सदी,
जग उठी, दफ्न हो चली, कहानियां कई,
संघनित हो बूंदें, 
बिखर गईं, ठूंठ हो चली शाख पर,
झूमती पात पर,
बहक उठे, फिर वो सारे जज्बात,
इक एहसास,
या ख्याल बन, छाए तो तुम!

शुक्र है, चलो, आए तो तुम!

यूं दे गया, फिर कोई सदा,
ज्यूं अचानक ही मिला, मंजिलों का पता,
पुकारती, दो बाहें,
यूं, प्रशस्त कर गई, विलुप्त सी राहें,
उभरी, वही नदी,
समेट चली थी जो, सदियां कई,
इस धुंध में,
इक सदा बन, छाए तो तुम!

शुक्र है, चलो, आए तो तुम!

Thursday, 14 August 2025

ताना

कभी-कभी, खुल जाते वक्त के तहखाने...

यूं ही, छिड़ जाते, बिसरे कई तराने,
शिकायतें अनगिनत पलों के, अंतहीन से ताने,
कर भी ना पाऊं, अब उनको अनसुना,
समझ भी न पाऊं, क्यूं उसने बूना!

उधेड़-बुन इक, फिर, बुनता ये मन,
वक्त के, किस पहलू से, थी मेरी क्या अनबन!
छूआ ही कब, मैने, संवेदनाओं के तार,
बीते वो पल, हैं क्यूं इतने बेजार!

अनकही, रह गई मेरी ही अनसुनी,
शिकायतें, एकाकी से, इस मन की ही थी दूनी,
शब्दहीन ही रह गए थे, वो शिकवा सारे,
गवाह अब भी, वो गगन के तारे!

ठहरे कुछ पल, चुभ जाते कांटों से,
बनकर कुछ बूंदें, जब-तब, बह आते आंखों से,
चलता कब वश, जब करते वो बेवश,
खींच ले जाते, उसी ओर बरवस!

मन कब चाहे, फिर, उस ओर जाना,
कंपित-गुंजित पल में, जी कब चाहे, मर जाना,
ठहरा, इक दरिया सा, पर वो ही पल,
संग रहता, एक साया सा हरपल!

काश! दफन हो जाते, सारे अफसाने,
फिर कभी ना खुलते, वक्त के वो बंद तहखाने,
संतप्त रह पाती, सोई मेरी संवेदना,
उधेड़-बुन, न बुनती कोई वेदना!

कभी-कभी, खुल जाते वक्त के तहखाने...

Sunday, 10 August 2025

छल

क्षण भर जो भाया, उस क्षण ही मन जी पाया,
पाने को तो, जीवन भर कितना पाया,
शेष क्षण, बस सूना ही पाया!

गुंजन, कंपन, सिहरन, तड़पन भरा वो आंगन,
सुने क्षण में, विरह भरा वो आलिंगन, 
कितना कुछ, मन भर लाया!

ये दामन, कितना भरा-भरा, हर ओर हरा-हरा,
नैनों में, अब भी, सावन सा नीर भरा,
शायद, वो ही क्षण गहराया!

जो छलता ना वो क्षण, यूं पिघलता ना ये क्षण,
न जलता ये मन, न होता धुआं-धुआं,
न होता, एकाकी इक छाया!

आकुल ही रहा, व्याकुल भटकता ये आकाश,
लिए हल पल, अबुझ बूंदों की प्यास,
वहीं, क्षितिज पर उतर आया!

क्षण वो ही इक भाया, उस क्षण ने ही तड़पाया,
रंग, उस क्षितिज का, जब भी गहराया,
नैनों में, वो क्षण उभर आया!

क्षण भर जो भाया, उस क्षण ही मन जी पाया,
पाने को तो, जीवन भर कितना पाया,
शेष क्षण, बस सूना ही पाया!

Monday, 4 August 2025

मां

कौन सा वो जहां, वो कौन सी क्षितिज,
खोई मां कहां?

जली, इक चिता,
उस रोज, भस्मीभूत हुई थी वो काया,
उठ चला,
मां का, सरमाया!

पर, बिंबित रही,
नैनों में अंकित, करुणामय रूप वही,
पास सदा,
उसका ही, साया!

शेष, बचे वे स्पर्श,
सारे संदर्भ, सारे सारगर्भित आदर्श,
प्राण अंश,
देती, इक छाया!

पर वे शब्द कहां,
नि:स्तब्ध करते, निश्छल वे नैन कहां,
लुप्त हुआ,
जो भी था पाया!

एकाकी, थी वो,
झेले पति-प्रलाप, सहे दंश सदियों,
वही दुख,
बांट, न पाया!

ले भी ना सका,
ममता के, सुखमय अंतिम वे क्षण,
न सानिध्य,
ही, निभा पाया!

वक्त ही, रूठा,
छांव मेरा, वक्त ने ही, मुझसे लूटा,
सोचूं बैठा,
मंदिर, क्यूं टूटा!

दो पल ही सही, 
ले चल मुझे ओ गगन,ओ क्षितिज,
देखूं जरा,
है कैसी मां वहां!

कौन सा वो जहां, वो कौन सी क्षितिज,
खोई मां कहां?

Sunday, 3 August 2025

जीवन-शंख

गूंज उठी, कहीं इक शंख,
बिखेर गई, हवाओं में अनगिनत तरंग,
उठा, मृत-मन में,  उन्माद सा,
जागी, तन में, इक सिहरन,
जागे, मृत-प्राण,
इक, नव-जीवन का उन्वान!

जीवन, ज्यूं विहीन पंख,
हर ओर धुआं, विलीन राहें, मन-मलंग,
इक गुंजन का, विस्तार उठा,
पंख लिए, ये प्राण उठा,
इक, नव-विहान,
महकी पवन, चहका प्राण!

मृत सी, लगती वो शंख,
पर सिमेटे, विस्तृत, विविध, रंग-उमंग,
अन्तस्थ, अनंत जीवन-शय,
अन्तः, गाता इक हृदय,
जागा, इक प्राण,
सोए, हर मन का विहान!

कुछ हम गूंजे, शंख सा,
तुम दो, खाली पन्नों को, इक रंग सा,
भर दो, वादी में इक लय,
सुने क्षण में इक सुर,
वाणी में, तान,
नव-आशा का, उत्थान!