Wednesday, 17 February 2016

उम्मीद की शाख

नाउम्मीद कहाँ वो, उम्मीद की शाख पर बैठा अब भी वो।

एक उम्मीद लिए बैठा वो मन में,
दीदार-ए- तसव्वुर में न जाने किसके,
हसरतें हजार उस दिल की,
ख्वाहिशें सपने रंगीन सजाने की।

एक प्यासा उम्मीद पल रहा वहाँ,
तड़पते छलकते जज्बात हृदय में लिए,
नश्तर नासूर बने उस दिल की,
हसरतें पतंगों सी प्रीत निभाने की।

एक उम्मीद विवश बेचैन वहाँ,
झंझावात सी अनकही अनुभूतियाँ मन में लिए,
निःस्तब्ध पुकार दिल मे उसकी,
चाह सिसकी की प्रतिध्वनि सुनाने की।

नाउम्मीद कहाँ वो, एक उम्मीद लिए बैठा अब भी वो।

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