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Saturday, 27 July 2019

झूले

ऐसे न थे, पहले कभी, सावन के ये झूले!

अब तो उम्र ढ़ली,
बूँदों में पली, फिर भी सावन ये जली,
है भीगी सी, ये नजर
बस, सूने से हैं, दिल के मंज़र,
क्यूं, हो तुम भूले,
सजन, बूूंदों के है मेले!
पर, चुपचुप से हैं, सावन के ये झूले!

न जाने वो तितली,
इक पल को मिली, कहीं उड़ चली,
है भीगी सी, ये नजर,
बस, सूखे से है, मन के शहर,
क्यूं, यादों के तले,
ये सावन, ये सांझ ढ़ले!
पर, चुपचुप से हैं, सावन के ये झूले!

सांझें, हैं ये धुंधली,
हैं थके से कदम, साँसें हैं उथली,
है भींगा सा, ये मंजर,
बस, हैं रूठे, सपनों के नगर,
क्यूं, वादों के तले,
भीगे से, ये बारात चले!
पर, चुपचुप से हैं, सावन के ये झूले!

ऐसे न थे, पहले कभी, सावन के ये झूले!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा