Showing posts with label धागे. Show all posts
Showing posts with label धागे. Show all posts

Tuesday 19 October 2021

धागे

मढ़ते-मढ़ते, रिश्तों के सारे नाज़ुक धागे,
बुनते-बुनते, भावुक से कितने पल,
आ पहुंचे, मंजिल तक हम।

कितने अंजाने थे तुम, और बेगाने से हम,
इक सिमटे से, पल थे तुम, 
और कितने बिखरे से, बादल थे हम,
यूं, चुनते-चुनते, तुझ संग खुद को,
आ पहुंचे, साहिल तक हम।

मढ़ते-मढ़ते, रिश्तों के सारे नाज़ुक धागे...

यूं, आसान न था, बिखरे ये टुकड़े चुनना,
यूं धागों संग, चिथड़े सिलना,
भरमाए से, इस गगन के तारे थे हम,
यूं, चलते-चलते, अंधेरे से राहों में,
आ पहुंचे, मंजिल तक हम।

मढ़ते-मढ़ते, रिश्तों के सारे नाज़ुक धागे...

हौले से, तुम आ बैठे, हृदय के आंगन में,
यूं बरसे, घन जैसे सावन में,
प्यासे, पतझड़ के, सूखे उपवन हम,
यूं, रीतते-रीतते, भीगी बारिश में,
आ पहुंचे, साहिल तक हम।

मढ़ते-मढ़ते, रिश्तों के सारे नाज़ुक धागे...

अब जाने, कितने जन्मों का, ये बंधन है,
किन धागों का, गठबंधन है,
बैठे हैं, तेरे इन आँचल के, साए हम,
यूं, सुनते-सुनते, जीवन के किस्से,
आ पहुंचे, मंजिल तक हम।

मढ़ते-मढ़ते, रिश्तों के सारे नाज़ुक धागे,
बुनते-बुनते, भावुक से कितने पल,
आ पहुंचे, मंजिल तक हम।

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday 25 March 2016

धागे जज्बातों के

कितनी ही बातें हैं.......
दिल में कहने को,कोई सुन ले तो आकर!
धागे जज्बातों के.....
उलझे हैं, थोड़ा इनको सुलझा लें तो जाकर।

व्यथा के आँसू......
क्युँ सूखे हैं, थोड़ा इनको बह जाने दो झरकर,
चंद रातें ही बची हैं.....
जीने को, थोड़ा सा तो हँस लेने दो जी भरकर,

इतने पहरे क्युँ......
जीने पर, जज्बातों को मुखरित तू कर,
बात दबी सी जो........
दिल में, कह दे खुले व्योम में जाकर।

चंदन बना तू........
आँसुओं के, जीवन की बहती धारा में घिसकर,
व्यथा तो बस......
इक स्वर है, बाकी के सप्त स्वर तू कर प्रखर।

कितनी ही बातें हैं.......
दिल में कहने को,कोई सुन ले तो आकर!