कितनी ही बातें हैं.......
दिल में कहने को,कोई सुन ले तो आकर!
धागे जज्बातों के.....
उलझे हैं, थोड़ा इनको सुलझा लें तो जाकर।
व्यथा के आँसू......
क्युँ सूखे हैं, थोड़ा इनको बह जाने दो झरकर,
चंद रातें ही बची हैं.....
जीने को, थोड़ा सा तो हँस लेने दो जी भरकर,
इतने पहरे क्युँ......
जीने पर, जज्बातों को मुखरित तू कर,
बात दबी सी जो........
दिल में, कह दे खुले व्योम में जाकर।
चंदन बना तू........
आँसुओं के, जीवन की बहती धारा में घिसकर,
व्यथा तो बस......
इक स्वर है, बाकी के सप्त स्वर तू कर प्रखर।
कितनी ही बातें हैं.......
दिल में कहने को,कोई सुन ले तो आकर!
दिल में कहने को,कोई सुन ले तो आकर!
धागे जज्बातों के.....
उलझे हैं, थोड़ा इनको सुलझा लें तो जाकर।
व्यथा के आँसू......
क्युँ सूखे हैं, थोड़ा इनको बह जाने दो झरकर,
चंद रातें ही बची हैं.....
जीने को, थोड़ा सा तो हँस लेने दो जी भरकर,
इतने पहरे क्युँ......
जीने पर, जज्बातों को मुखरित तू कर,
बात दबी सी जो........
दिल में, कह दे खुले व्योम में जाकर।
चंदन बना तू........
आँसुओं के, जीवन की बहती धारा में घिसकर,
व्यथा तो बस......
इक स्वर है, बाकी के सप्त स्वर तू कर प्रखर।
कितनी ही बातें हैं.......
दिल में कहने को,कोई सुन ले तो आकर!
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