क्या लिख गए वो, मुझको सुना?
ऐ हवा, जरा तू गुनगुना!
कोई तो बात है, जो महकी सी ये रात है!
या कहीं, खिल रहा परिजात है!
नींद, नैनों से, हो गए गुम,
कुछ तो बता, लिख रही क्या रात है!
मुस्कुराए ये फूल क्यूँ, डोलते क्यूँ पात है?
शायद, कोई, दे गया सौगात है!
चैन, अब तो, हो गए गुम,
कुछ तो बता, कह रही क्या पात हैं!
क्यूँ बह रही पवन, कैसी ये, झंझावात है?
किसी से, कर रही क्या बात है?
हो रही, कैसी ये विचलन?
बता दे, क्यूँ झूमती ये झंझावात है?
कुछ है अधूरा, अधलिखा सा जज्बात हैं!
उलझाए मुझे, ये कैसी बात है!
झकझोर जाती है ये बातें,
तु मुझको बता, ये कैसे जज्बात हैं?
क्या लिख गए वो, मुझको सुना?
ऐ हवा, जरा तू गुनगुना!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)