क्या लिख गए वो, मुझको सुना?
ऐ हवा, जरा तू गुनगुना!
कोई तो बात है, जो महकी सी ये रात है!
या कहीं, खिल रहा परिजात है!
नींद, नैनों से, हो गए गुम,
कुछ तो बता, लिख रही क्या रात है!
मुस्कुराए ये फूल क्यूँ, डोलते क्यूँ पात है?
शायद, कोई, दे गया सौगात है!
चैन, अब तो, हो गए गुम,
कुछ तो बता, कह रही क्या पात हैं!
क्यूँ बह रही पवन, कैसी ये, झंझावात है?
किसी से, कर रही क्या बात है?
हो रही, कैसी ये विचलन?
बता दे, क्यूँ झूमती ये झंझावात है?
कुछ है अधूरा, अधलिखा सा जज्बात हैं!
उलझाए मुझे, ये कैसी बात है!
झकझोर जाती है ये बातें,
तु मुझको बता, ये कैसे जज्बात हैं?
क्या लिख गए वो, मुझको सुना?
ऐ हवा, जरा तू गुनगुना!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Nice one
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय विजय जी। मेरः ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय विश्वमोहन जी।
Deleteकतिपय कारणों से फेसबुक से दूर हूँ । फिर भी, ब्लॉग पर स्वप्रेरित होकर आपके आगमण हेतु साधुवाद ।
फेसबुक ने तो, जैसे लेखकों को ब्लॉग जैसी निजी बौद्धिक सम्पदा के विकास की राह से दूर ही कर दिया है।
अपने पुराने सभी साथियों के भी वापस ब्लॉग पर लौटने का इंतजार बना रहेगा। अन्यथा भी, मैं तो इक राह चुन ही चुका हूँ।
ब्लॉग के विकास में सहयोग हेतु पुनः आभार।
सार्थक
ReplyDeleteबहुत-बहुतधन्यवाद आदरणीय ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-04-2020) को 'सबके मन को भाते आम' (चर्चा अंक-3677) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी।
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय ओंकार जी।
Deletebuy telegram channel members
ReplyDeleteजी, कोशिश करूँगा । धन्यवाद ।
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