Saturday, 18 April 2020

वे लिख गए क्या

क्या लिख गए वो, मुझको सुना?
ऐ हवा, जरा तू गुनगुना!

कोई तो बात है, जो महकी सी ये रात है!
या कहीं, खिल रहा परिजात है!
नींद, नैनों से, हो गए गुम,
कुछ तो बता, लिख रही क्या रात है!

मुस्कुराए ये फूल क्यूँ, डोलते क्यूँ पात है?
शायद, कोई, दे गया सौगात है!
चैन, अब तो, हो गए गुम,
कुछ तो बता, कह रही क्या पात हैं!

क्यूँ बह रही पवन, कैसी ये, झंझावात है?
किसी से, कर रही क्या बात है?
हो रही, कैसी ये विचलन?
बता दे, क्यूँ झूमती ये झंझावात है?

कुछ है अधूरा, अधलिखा सा जज्बात हैं!
उलझाए मुझे, ये कैसी बात है!
झकझोर जाती है ये बातें,
तु मुझको बता, ये कैसे जज्बात हैं?

क्या लिख गए वो, मुझको सुना?
ऐ हवा, जरा तू गुनगुना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय विजय जी। मेरः ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।

      Delete
  2. Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय विश्वमोहन जी।
      कतिपय कारणों से फेसबुक से दूर हूँ । फिर भी, ब्लॉग पर स्वप्रेरित होकर आपके आगमण हेतु साधुवाद ।
      फेसबुक ने तो, जैसे लेखकों को ब्लॉग जैसी निजी बौद्धिक सम्पदा के विकास की राह से दूर ही कर दिया है।
      अपने पुराने सभी साथियों के भी वापस ब्लॉग पर लौटने का इंतजार बना रहेगा। अन्यथा भी, मैं तो इक राह चुन ही चुका हूँ।
      ब्लॉग के विकास में सहयोग हेतु पुनः आभार।

      Delete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-04-2020) को 'सबके मन को भाते आम' (चर्चा अंक-3677) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete