Showing posts with label यात्रा. Show all posts
Showing posts with label यात्रा. Show all posts

Monday, 6 June 2016

इक नया शिखर

यात्रा के इस चरण की कौन सी शिखर है ये,
है यह एक शिखर या पड़ाव किसी नए यात्रा की ये,
या उपलब्धियों के मुस्कान की एक मुकाम है ये,
शिखर मेरी है यह कौन सी यह खबर है किसे।

शिखरों की है यहाँ अनगिनत सी श्रृंखलाएँ,
कुछ छोटी कुछ उँची जैसे हो माला की ये मणिकाएँ,
कितनी ऊबड़-खाबड़ दुर्गम राहों वाली ये मालाएँ,
पिरोता हूँ माला मैं गिन-गिन कर ये मणिकाएँ।

इस साधना से इक पल भी भटके ना ये मन,
साधकों ने इन शिखरों पर वारे हैं तन, मन और धन,
पखारे हैं कुशाग्र प्रतिभाओं ने इन शिखरों के चरण,
शिखर कुछ ऐसा ही बन जाऊँ कहता है मेरा मन।
यात्रा यह हर पल चलती रहे शिखर की ओर,
हाथों में हो कलम और विचारों का हो इक नया दौर,
सरस्वती विराजे जिह्वा पर संकल्प दृढ़ हो और,
लाँघ जाऊँ ये बाधाएँ शिखर बनूँ मैं सिरमौर।
---------------------------------------------
इस ब्लाग पर मेरी यह 500 वीं रचना है। जिन्होंने मुझे प्रेरित किया और सराहा उन्हें मैं कभी भूल नहीं सकता। धन्यवाद।

Monday, 22 February 2016

निर्वाण की कठिन यात्रा

निर्वाण की अकल्पित कठिन यात्रा,
पल पल तय कर रहा इन्सान,
राह कठिनतम इस जीवन की,
लक्ष्र्य कर्म के यहाँ महान,
निर्वाण की राह चलता जा रहा इन्सान।

पल भर रूक सोचता मन में,
निर्वाण मिलेगा पर कैसे जीवन में,
लक्ष्य क्या साधने होंगे राहों में,
कितने विष पड़ेंगे जीवन के पीने,
निर्वाण पाएगा क्या तन इस जीवन में?

तन और मन में द्वंद चल रहा निरंतर,
तन कहता तू राह मोह की पकड़,
मन कहता तू जीवन की माया के संग चल,
विवेक पिस रहा मध्य इस अन्तर्द्वन्द के,
इच्छाएँ मन और तन की भारी निर्वाण पर।

नियंत्रण इन इच्छाओं पर करता,
राह निर्वाण की तय कर रहा इन्सान,
जीवन की इस महा-कर्मक्षेत्र में,
लघु इच्छाओं को तज, साधे लक्ष्य को,
यह कठिन यात्रा पल पल कर रहा इन्सान।