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Saturday 22 January 2022

उनकी बातें

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
उधर, स्वतः रातों का ढ़लना,
अंततः एक सपना,
आंखों में, भर गई थी उसकी बातें,
जैसे-तैसे, कटी थी रातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

संदली, वही, खुश्बू ले आईं हवाएँ,
छू कर, बह चली, इक पवन,
अजीब सी, चुभन,
बहके से क्षण की, बहकी सौगातें,
कह गईं, उनकी ही बातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

विहसते फूलों में, उनके ही अक्श,
कलियों में, उनकी इक हँसी,
पात-पात, चितवन,
दिलाती रही, हर क्षण उनकी यादें,
दिन भर, उनकी ही बातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

अधूरी ही, रह गई थी, सैकड़ों बातें,
हौले से, ढ़लने लगे, वे प्रहर,
उभरता, इक सांझ,
विविध रंग, और, लम्बी लम्बी रातें,
और, वो सपनों की बातें!

फिर, सुबह ले आई, उसी की भीनी यादें....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)