Tuesday 2 April 2019

वक्त के संग

यूँ! वक्त के संग, थोड़े हम भी गए बदल...

ठहरा कहीं न जीवन, शाश्वत है परिवर्तन,
गतिशील वक्त, हो वन में जैसे हिरण,
न छोड़ता कहीं, अपने पाँवों की भी निशानी,
चतुर-चपल, फिर करता है ये चतुराई,
वक्त बड़ा ही निष्ठुर, जाने कब कर जाए छल!

यूँ! वक्त के संग, थोड़े हम भी गए बदल...

न की थी वक्त ने, कोई हम पे मेहरबानी,
करवटें खुद ही, बदलता रहा हर वक्त,
तन्हाई खुद की, है उसे किसी के संग मिटानी,
सोंच कर यही, रहता वो संग कुछ पल,
फिर मौसमों की तरह, बस वो जाता है बदल!

यूँ! वक्त के संग, थोड़े हम भी गए बदल...

हैं बड़े ही बेरहम, वक्त के ज़ुल्मों-सितम,
चल दिए तोड़ कर, मन के सारे भरम,
यूँ न कोई किसी से करे, छल-कपट बेईमानी,
ज्यूं कर गया है, वक्त अपनी मनमानी,
बिन धुआँ इक आग यह, इन में न जाएं जल!

यूँ! वक्त के संग, थोड़े हम भी गए बदल...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

12 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति परिवर्तन शाश्वत है ।

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    1. आदरणीय रीतु जी, आभार । बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  2. हैं बड़े ही बेरहम, वक्त के ज़ुल्मों-सितम,
    चल दिए तोड़ कर, मन के सारे भरम,
    यूँ न कोई किसी से करे, छल-कपट बेईमानी,
    ज्यूं कर गया है, वक्त अपनी मनमानी,
    बिन धुआँ इक आग यह, इन में न जाएं जल!
    बेहतरीन रचना

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    1. आदरणीया अनुराधा जी, बहुत-बहुत धन्यवाद । आभारी हूँ आपका।

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    1. आदरणीय सुशील जी, आभार । बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  4. वाह !बहुत सुन्दर आदरणीय
    सादर

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    1. आदरणीय अनीता जी, आभार । बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आदरणीय मयंक जी, आभार । बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  6. Thanks! It's such a very nice post. i will definitely share it with colleagues

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