Tuesday 26 April 2016

ऐ मन तू सपने ही देख

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर.......,

तेरी भ्रम की दुनियाँ ही है अच्छी,
तू नहीं जानता सत्य मे है कितनी पीड़ा,
सत्य से अंजान तेरी अपनी ही है इक दुनिया,
जहाँ दु:ख का बोध सर्वथा नही,
दुःख हो भी तो, हो बस सपनों जैसे ही क्षणभंगूर।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर......

सपनों मे तेरे क्या-क्या दिख जाता है,
बेगानों मे भी कोई अपना सा लग जाता है,
कष्ट-विषाद के कण हो जाते हैे धुमिल,
ऐ मन, इन क्षणिक एहसासों को बांधे रख तू खुद में,
ताकि मै भी कर पाऊँ सुख बोध कुछ इनके पल भर।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर........

काश, कभी टूटते ना मन के ये सपने,
इन्सानों के मन मे हरपल फूटते नए इक सपने,
गम के इन अंकुरों से होते सदा हम अंजाने,
विछोह विषाद के ये पल जीवन से होते बेगाने,
हर दिल में बहते वसुधैव कुटुम्बकम के ही बस झरने।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर........

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