Wednesday 13 April 2016

तुम भी गा देते

फिर छेड़े हैं गीत,
पंछियों नें उस डाल पर,
कलरव करती हैं,
मधु-स्वर में सरस ताल पर,
गीत कोई गा देते,
तुम भी,
जर्जर वीणा की इस तान पर।

डाली डाली अब,
झूम रही है उस उपवन के,
भीग रही हैं,
नव सरस राग में,
अन्त: चितवन के,
आँचल सा लहराते,
तुम भी,
स्वरलहर बन इस जीवन पर।

फिर खोले हैं,
कलियों ने धूँघट,
स्वर पंछी की सुनकर,
बाहें फैलाई हैं फलक नें
रूप बादलों का लेकर,
मखमली सा स्पर्श दे जाते,
तुम भी,
स्नेहमयी दामन अपने फैलाकर।

2 comments:

  1. फिर छेड़े हैं गीत,
    पंछियों नें उस डाल पर,
    कलरव करती हैं,
    मधु-स्वर में सरस ताल पर,
    गीत कोई गा देते,
    तुम भी,
    जर्जर वीणा की इस तान पर।

    Nice lovely poem

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  2. फिर छेड़े हैं गीत,
    पंछियों नें उस डाल पर,
    कलरव करती हैं,
    मधु-स्वर में सरस ताल पर,
    गीत कोई गा देते,
    तुम भी,
    जर्जर वीणा की इस तान पर।

    Nice lovely poem

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