Tuesday, 19 April 2016

अधूरे सपने

अधूरे सपने ! ये संग-संग ही चलते है जीवन के!

अधूरे ही रह जाते कुछ सपने आँखों में,
कब नींद खुली कब सपने टूटे इस जीवन में,
कब आँख लगी फिर जागे सपने नैनों में।

अधूरे सपने ! सोते जगते साथ साथ ही जीवन में!

सपनों की सीमा कहीं उस दूर क्षितिज में,
पंख लगा उड़ जाता वो कहीं उस दूर गगण में,
कब डोर सपनों की आ पाई है हाथों में।

अधूरे सपने ! पतंगों से उड़ते जीवन के नील गगन में!

पलकों के नीचे मेरी सपनों का रैन बसेरा,
बंद होती जब ये पलकें सपनों का हो नया सवेरा,
अधूरे उन सपनो संग खुश रहता है मन मेरा।

अधूरे सपने ! ये प्यार बन के पलते हैं मेरे हृदय में।

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