विदाई, पल ये फिर आई,
बदरी सावन की, नयनन में छाई,
बूँदों से, ये गगरी भर आई,
रोके सकें कैसे, इन अँसुवन को,
ये लहर, ये भँवर खारेपन की,
रख देती हैं, झक-झोर!
भीग चले हैं, हृदय के कोर,
कोई खींच रहा है, विरहा के डोर,
समझाऊँ कैसे, इस मन को,
दूर कहाँ ले जाऊँ, इस बैरन को,
जिद करता, है ये जाने की,
हर पल, तेरी ही ओर!
धड़कता था, जब तेरा मन,
विहँसता था, तुम संग ये आँगन,
कल से ही, ये ढ़ूंढ़ेगी तुझको,
इक सूनापन, तड़पाएंगी इनको,
कोई डोर, तेरे अपनत्व की,
खीचेंगी, तेरी ही ओर!
विदा तो, हो जाओगे तुम,
मन से जुदा, ना हो पाओगे तुम,
ले तो जाओगे, इस तन को,
ले जाओगे कैसे, इस मन को,
छाँव घनेरी, इन यादों की,
राहों को, देंगी मोड़!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
बदरी सावन की, नयनन में छाई,
बूँदों से, ये गगरी भर आई,
रोके सकें कैसे, इन अँसुवन को,
ये लहर, ये भँवर खारेपन की,
रख देती हैं, झक-झोर!
भीग चले हैं, हृदय के कोर,
कोई खींच रहा है, विरहा के डोर,
समझाऊँ कैसे, इस मन को,
दूर कहाँ ले जाऊँ, इस बैरन को,
जिद करता, है ये जाने की,
हर पल, तेरी ही ओर!
धड़कता था, जब तेरा मन,
विहँसता था, तुम संग ये आँगन,
कल से ही, ये ढ़ूंढ़ेगी तुझको,
इक सूनापन, तड़पाएंगी इनको,
कोई डोर, तेरे अपनत्व की,
खीचेंगी, तेरी ही ओर!
विदा तो, हो जाओगे तुम,
मन से जुदा, ना हो पाओगे तुम,
ले तो जाओगे, इस तन को,
ले जाओगे कैसे, इस मन को,
छाँव घनेरी, इन यादों की,
राहों को, देंगी मोड़!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
हृदय में कसक पैदा करता अत्यंत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया मीना जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना गुरुवार १८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हृदयतल से आभार आदरणीय
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीय
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3400 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
हृदयतल से आभार आदरणीय
Deleteमन को भिगोती सी अत्यंत हृदय स्पर्शी रचना ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति
ReplyDeleteहृदयतल से आभार आदरणीया
Deleteबेहतरीन सृजन सर
ReplyDeleteसादर
हृदयतल से आभार आदरणीया
Deleteबहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteविदा तो, हो जाओगे तुम,
मन से जुदा, ना हो पाओगे तुम,
ले तो जाओगे, इस तन को,
ले जाओगे कैसे, इस मन को,
छाँव घनेरी, इन यादों की,
राहों को, देंगी मोड़!
आदरणीया सुधा जी, हृदयतल से आभार। आपके शब्द प्रेरित करते हैं । साधुवाद ।
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