Sunday 20 December 2020

और कितने दूर

और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!

सब तो, छूट चुका है पीछे,
फिर भागे मन, किन सपनों के पीछे,
वो, जो है रातों के साए,
कब हाथों में आए,
जाने, कहाँ-कहाँ, भटकाएगी,
अधूरी मन की चाह!

और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!

जाने कब, भूल चुके सब,
मन के स्नेहिल बंधन, तोड़ चले कब,
बिसराए, नेह भरे गंध, 
वो गेह भरे सुगंध,
तन्हा पल में, याद दिलाएगी,
बन कर इक आह!

और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!

अब तक, लब्ध रहा क्या!
क्या प्रासंगिक थी, सारी उपलब्धियाँ!
गिनता हूँ अब तारों को,
मलता हूँ हाथों को,
झूठी चाहत, क्या करवाएगी?
बस, भटकाएगी राह!

और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!

प्रसंग कई, जब छूट चले,
जाना, जब खुद अप्रासंगिक हो चले,
तर्क, भला  क्या देना!
राहों में, क्या रोना!
इस प्रश्नकाल में, जग जाएगी!
इक तृष्णा इक चाह!

और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

20 comments:

  1. बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।
    नई पोस्ट : https://www.iwillrocknow.com/2020/12/blog-post_20.html?m=1

    ReplyDelete
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 दिसंबर 2020 को 'जवान तैनात हैं देश की सरहदों पर' (चर्चा अंक- 3922) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
  3. अब तक, लब्ध रहा क्या!
    क्या प्रासंगिक थी, सारी उपलब्धियाँ!
    गिनता हूँ अब तारों को,
    मलता हूँ हाथों को,
    झूठी चाहत, क्या करवाएगी?
    बस, भटकाएगी राह!

    और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!अन्तर्मन तक छूती सुन्दर रचना..!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया जिज्ञासा जी

      Delete
  4. वो गेह भरे सुगंध तन्हा पल में याद दिलाएगी, बहुत अच्छा लगा, सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया भारती जी

      Delete
  5. वाह वाह बहुत सुंदर,बेहद उम्दा 👌
    सादर प्रणाम 🙏

    ReplyDelete
  6. फिर भी अहम का विसर्जन कहां हो पाता है भले ही हाथ कुछ भी नहीं आता है । अति सुंदर सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता तन्मय जी।

      Delete
    2. बहुत बहुत भाव पूर्ण सुन्दर रचना

      Delete
    3. हार्दिक आभार आदरणीय आलोक जी। सुस्वागतम्। ।।।। स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।

      Delete
  7. प्रसंग कई, जब छूट चले,
    जाना, जब खुद अप्रासंगिक हो चले,
    तर्क, भला क्या देना!
    राहों में, क्या रोना!
    इस प्रश्नकाल में, जग जाएगी!
    इक तृष्णा इक चाह!...

    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete
  8. जाने कब, भूल चुके सब,
    मन के स्नेहिल बंधन, तोड़ चले कब,
    बिसराए, नेह भरे गंध,
    वो गेह भरे सुगंध,
    तन्हा पल में, याद दिलाएगी,
    बन कर इक आह!

    और कितने दूर, ले जाएगी ये राह!.... वाह उम्दा रचना

    ReplyDelete
  9. अद्भुत है आपकी रचना, अद्भुत है आपकी सोच वाह क्या बात है

    ReplyDelete