नीति-अनीति, यथार्थ या भ्रम,
कहते हैं किसे!
शायद, जायज है, सब इसमें,
राजनीति!
कहते है शायद जिसे!
यूँ तो, गैरों की सुनता हूँ,
अनुभव, चुनता हूँ,
अनुभूतियाँ, शब्दों को देकर,
कविता बुनता हूँ!
पर समझ सका न, इस भ्रम को,
बुनता रहा, इक अधेरबुन,
चुन पाया ना, यथार्थ,
शायद, यहाँ, होता सब परमार्थ!
यूँ इस भ्रम में,
सारे ज्ञान, हुए धूमिल,
पर, मिल पाया ना, इक बिस्मिल!
नीति कहाँ!
और, किधर अनीति!
सर्वथा,
इतर रही राजनीति!
अधिकार, कर्तव्यों पर हैं हावी,
संस्कार, ऐसे!
शायद, जायज है, सब इसमें,
राजनीति!
कहते है शायद जिसे!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 03 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया दी
Deleteसटीक
ReplyDeleteशुक्रिया महोदय
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आदरणीय
Deleteयही राजनीति है।
ReplyDeleteशुक्रिया नीतीश जी
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब !यहाँ अधिकार कर्तव्यों पर भारी ही होते हैं राजनीति में ।काश कैई तो हो एऐसा जो कर्तव्यों को ऊपर समझे ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया शुभा जी।
Deleteकटु सत्य
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी
Deleteसुंदर अनुभूतियों से ओत प्रोत
ReplyDeleteशुक्रिया महोदय
Deleteप्रभावशाली रचना - - सत्यता को उजागर करती हुई।
ReplyDeleteशुक्रिया महोदय
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