मुड़ कर, देखते हो क्या?
अपनों से, नाते तोड़ कर,
खुद, तुम ही गए, सब छोड़ कर,
मुँह, मोड़ कर,
अंजान पथ,
अब सामने है, गहरी सी खाई,
पीछे, बस एक परछाईं,
ये दुनियाँ पराई!
मुड़ कर, देखते हो क्या?
पथ एक, तुम ने ही चुना,
खूब दौड़े, कर के सब अनसुना,
अलग ही राह,
गिला, कैसा,
जब सामने है, अंधा सा कुआं,
पीछे, हारा इक जुआ,
वो दुनियाँ कहाँ!
मुड़ कर, देखते हो क्या?
सब हैं पराए, कौन अपना,
परख लो, जिनको तुमने था चुना,
तोड़ो, ये भ्रम,
लौट आओ,
अब सामने है, पराया सा वन,
पीछे, एक अपनापन,
ये दुनियाँ तेरा!
मुड़ कर, देखते हो क्या?
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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