जरा, इस मन को, सम्हालूँ,
न जाओ, ठहर जाओ, यहीं क्षण भर!कुछ और नहीं, बस, इक अनकही,
मन में ही कहीं, बाँकी सी रही,
किसी क्षण, कह डालूँ,
दो पहर, ठहर जाओ, यहीं क्षण भर!
कैसे कहते हैं, भला, मन की बातें,
पहले मन को, जरा समझाते,
यूँ ही, न बिखर जाऊँ,
बतलाओ, रुक जाओ, यहीं क्षण भर!
सपना ना रहे, ये सपनों का शहर,
टूटे न कहीं, शीशे का ये घर,
ठहर जरा, कह डालूँ,
न जाओ, रुक जाओ, यहीं क्षण भर!
इक मूरत, अधूरी, जरा अब तक,
होगी पूरी, भला, कब तक,
आ रंगों में, इसे ढ़ालूँ,
पल दो पल, आओ, यहीं क्षण भर!
जरा, इस मन को, सम्हालूँ,
दो पहर, ठहर जाओ, यहीं क्षण भर!
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