जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Thursday 31 December 2015
समय और अनुबंध
जो छोड़ गए हैं तन्हा
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?
शायद! तन्हाई में कैसे जीता हूँ,
यही जानना चाहता है वो!
तो सुन लो...
नसों में रक्त प्रवाह है जारी,
धड़कनें अभी रुकी नही हैं,
सासों का प्रवाह निरंतर है,
हंदय मे कंपण अभी है शेष,
पलकें अब भी खुली हुई है,
आँखें देख पाती हैं नभ को,
कोशिकाएँ अभी मरी नही हैं।
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?
तो और सुनो,
स्वर कानों मे अब भी जाते है,
स्पर्श महसूस कर सकता हूँ,
जिह्वा स्वाद ले पाती हैं...
सूरज का उगना देखता हूँ
सामने अस्त हो जाना भी,
जीवन देखता हूँ और मृत्यु भी,
नित्य क्रिया कर्म अभी है जारी।
जो छोड़ गए हैं तन्हा,
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?
जीवन साँसों से चलता है,
दिल धड़कते हैं स्नायु से,
तंत्रिकाएँ चलाती है सोंच को।
पर दिलों के एहसास....?
एहसास मर जाते हैं तन्हाई में,
एहसास का स्पंदन साथ ढूंढ़ता है प्रीत का।
वर्ना जीवन तिल-तिल मरता है।
साँसों के आने जाने से केवल,
जीवन कहाँ चलता है?
उसने खून किया जीवन का,
तन्हाई मे जिसने भी छोड़ा,
पर साथ निभाता कौन अन्त तक,
मृत्यु से पहले .....!
सांसे तन्हा छोड़ जाती तन को,
शरीर छोड़ जाता है तन्हा मन को।
जो छोड़ गए हैं तन्हा,
वो पूछते हैं अक्सर, कैसे हो?
यादों के फूल
Wednesday 30 December 2015
जल उठे है मशाल
जल उठे असंख्य मशाल,
शांति, ज्योति, प्रगति के,
उठ खड़े हुए अनन्त हाथ,
प्रशस्त मार्ग हुए उन्नति के।
अनन्त काल जलें मशाल,
अन्त असीम रात्रि-तम हो,
सामने हो प्रखर प्रशस्त प्रहर,
भय दूर हुए जिंदगी के।
ग्यान का उन्नत प्रकाश हो,
अशांति, अचेतन, क्लेश घटे,
धरा पे फैले चांदनी की लहर,
पू्र्ण कामना हुए मानवों के।
फिर तेरी यादों के बादल छाए
यादें सारी सजीव हो चुकी हैं,
कोलाहल इनके उभर चुके हैं,
शोर मचाते ये अन्तर्मन मे,
कोयल की हूक मन को हर जाए।
आँखें सजल हो चुकी यादों में,
होठों पर इक चुप सी लगी हैं,
चेहरे पर छा गई अजीब शांति सी,
चातक के स्वर मनविभोर कर जाए।
फिर तेरी यादों के बादल छाए।
नववर्ष 2016 की शुभकामनाएँ
जागे हैं फिर नए अरमान,
उपजी है फिर नई आशाएँ,
तू इन आशाओं के संग तो हो ले।
वर्ष नया है प्रारंभ नई है,
दिवस नया है प्रहर नई है,
हर चिन्ताओं को तज पीछे,
तू इक नई उड़ान तो भर ले।
निराशा के घनघोर अंधेरे,
अब रह गए हैं पीछे तेरे,
सामने खड़ा एक नया लक्ष्य है,
तू इन लक्ष्यों के संग तो हो ले।
(हमारे समस्त पाठको को नववर्ष 2016 की