Wednesday 24 February 2016

जीवन कलश.....विशेष कामना


(साथियों, "जीवन कलश" के इस BLOG पर यह मेरी 300 वीं रचना है। इसे सफल बनाने और मुझे प्रोत्साहित करते रहे के लिए अनेकों धन्यवाद)

आपका आशीष मिला ............💦💕💕

आपका प्रेरणाशीष शिरोधार्य,
प्रशंसा पाता रहूँ करता रहूँ यह कार्य,
योग्य खुद को बनाऊँ, रहूँ आपको स्वीकार्य।

कृपा सरस्वती की बरसती रहे,
आपके घरों में भी सरस्वती हँसती रहें,
प्रगति के उच्च शिखरों मे आप नित चढ़ते रहे।

आपका जीवन समुज्जवल हो,
धन धान्य सुख से जीवन कलश पूर्ण हो,
सफलता की नई सीढ़ियाँ आपको मिलती रहे।

मैं युँ ही सांसों पर्यन्त लिखता रहूँ,
मेरी रचनाएँ जीवन की कलश बन निखरे,
मार्गदर्शन करें ये सबका, मेरा जीवन सफल करे।

मैं सीधी राह का राही

राह मुड़ती भी है कहीं, मुझको ये पता न था,
तंग राहों होकर ये दिल, आज तक गुजरा न था,
चाल कैसी चल रहे दोस्त, मुझको ये पता न था,
मैं सीधी राह का राही, ठोंकरों का मुझे गुमाँ न था।

एक साजिश पल रही थी, दोस्तो के दिल में कही,
दोस्त नायाब मिलते रहे, जो दुश्मनों से कम नही,
शह पे शह खाते रहे, दोस्तों की मेहरबानी से ही,
मैं सीधी राह का राही, पर दोस्तों पे अब यकीं नहीं।

टेढ़े मेढ़े इन रास्तों से, जिन्दगानी मेरी गुजरती रही,
दोस्तों से जख्म खाए, दुश्मनी किसी से की नहीं,
चाल मेरी एक सी, नफरत दिल में कभी पली नहीं,
मैं सीधी राह का राही, जीवन की मुल्यों पर मुझे यकीं।

वजूद आपका

शायद! इक ख्वाब बन के रहते हो तुम मुझमें ही कहीं।

तुम मुझमें ही खिलती हो इक फूल बनकर कहीं,
वजूद तेरा कहीं और है मुझको पता नहीं,
साया मेरा दिखने लगा है कुछ आप सा ही।

शायद! वो वजूद है आपका जो ढ़ल रहा मुझमें ही कहीं।

तेरा अक्श अब्र सा पिघल रहा मुझमें ही कहीं,
हर शैं खुशबु-ए-हिजाब मे डूबी है आपके ही,
रंगत मेरी दिखने लगी है कुछ आप सी ही।

शायद! आपकी खुश्बू गुजर रही है मुझमें ही कहीं।

खोह ये अजीब सी

चले जा रहे हैं हम, न जाने किस खोह में,
बढी़ जा रही जिन्दगी, न जाने किस खोज में,
है ये यात्रा अनंत सी, न जाने किस ओर में।

मंजिलो की खबर नहीं, न रास्तों का पता,
ये कौन सी मुकाम पर, जिन्दगी है क्या पता,
यात्री सभी अंजान से, न दोस्तों का है पता।

खोह ये अजीब सी, रास्ते कठिन दुर्गम यहाँ,
चल रहें हैं सब मगर, इक बोझ लिए सर पे यहाँ,
पाँव जले छाले पड़े, पर रुकती नही ये कारवाँ।

एक पल जो साथ थे, साथ हैं वो अब कहाँ,
एक एक कर दोस्तों का, अब साथ छूटता यहाँ,
सांसों की डोर खींचता, न जाने कौन कब कहाँ।

दिशा है ये कौन सी, जाना हमें किस दिशा,
भविष्य की खबर नहीं, गंतव्य का नहीं पता,
असंख्य प्रश्न है मगर, जवाब का नहीं पता।

कण मात्र है तू व्योम का, इतने न तू सवाल कर,
तू राह पकड़ एक चल, उस शक्ति पे तू विश्वास कर,
हम सब फसे इस खोह में, चलना हमें इसी डगर।

मुक्ति मिलेगी खोह से, तू चलता रहा अगर,
ईशारे उस पराशक्ति के, तू समझता रहा अगर,
खिलौने उस हाथ के, जाना है टूट के बिखर।

Tuesday 23 February 2016

यादों मे ढ़ल रही शाम

रुत शाम की आज फिर से घिर आई,
घटाएँ यादों की घिरकर, फिर मन पे हैं छाई,
ढूंढती हैं नजरे अब दूर तलक,
ये फैली है आज कैसी मीलों तक तन्हाई।

मन बावरा भ्रमर सा उड़ रहा अब,
बाग की हर कली से पूछता उनका पता बस,
सिमट रही घुंघट मे हर कली,
मन भ्रमर उदास मलिन हो रहा अब।

कतारों में जल गईं हैं अब हर तरफ रौशनी सी,
जल रही जो मेरे लिए, है वो दीप कौन सी, 
ढ़ल रही सांझ मन मे टीस लिए,
यादों में ढ़ल रही ये घड़ी उदास सी।

शाम कुछ यहाँ कुछ वहाँ

हुई है शाम दोनो तरफ, कुछ यहाँ भी और वहाँ भी,
पल रहे अरमान दोनों तरफ, इक यहाँ और इक वहाँ भी,
सिलसिले तन्हाईयों के अब हैं,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।

इक सपना पल रहा यहाँ, एक पल रहाँ वहाँ भी,
नींद आँखों से है गुमशुदा, कुछ यहाँ और कुछ वहाँ भी,
धड़कनें की जुबाँ अब बेजुबाँ हैं,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।

ख्वाब आँखों मे पल रहे हैं, कुछ यहाँ और कुछ वहाँ भी।
बजती है मन में शहनाईयाँ, अब यहाँ और वहाँ भी,
गीत साँसों मे अब बज रही है,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।

कतारें रौशनी की अब, कुछ यहाँ भी कुछ वहाँ भी।
इंतजार उस पल का, अब यहाँ भी वहाँ भी,
शाम ढल रही अब तुम बिन,
 कुछ यहाँ भी और कुृछ वहाँ भी।

रूठी कविता

लगता है हाथ पकड़ रखा हो किसी ने जैसे,
ताले लगा दिए गए हों जड़ विवेक पर जैसे,
धुंधली सी शाम कुम्हला रही है जैसे,
तन्हाई मे हाथों से दामन छूटा हो जैसे,
कविता मेरी आज रूठ गई है मुझसे जैसे।

वक्त की पावंदियों मे घुट गया हो दम जैसे,
पास रखी हो कलम पर सूखी हो स्याही जैसे,
कुम्हलाई शाम तिलमिला रही हो जैसे,
पहलू मे आकर वो रो पड़ी हो जैसे,
कविता मेरी आज रूठ गई है मुझसे जैसे।