घटाएँ यादों की घिरकर, फिर मन पे हैं छाई,
ढूंढती हैं नजरे अब दूर तलक,
ये फैली है आज कैसी मीलों तक तन्हाई।
मन बावरा भ्रमर सा उड़ रहा अब,
बाग की हर कली से पूछता उनका पता बस,
सिमट रही घुंघट मे हर कली,
मन भ्रमर उदास मलिन हो रहा अब।
कतारों में जल गईं हैं अब हर तरफ रौशनी सी,
जल रही जो मेरे लिए, है वो दीप कौन सी,
ढ़ल रही सांझ मन मे टीस लिए,
यादों में ढ़ल रही ये घड़ी उदास सी।
No comments:
Post a Comment