Friday, 18 August 2017

अधर

सुंदर हैं वो अधर, मेरे शब्दों में जो भरते हैं स्वर...

ओ संगनिष्ठा, मेरे कोरे स्वर तू होठों पे बिठा,
जब ये तेरे रंगरंजित अधरों का आलिंगन ले पाएंगे,
अंबर के अतिरंजित रंग इन शब्दों मे भर जाएँगे!

शब्दों के मेरे रंगरंजित स्वर, रंग देंगे ये तेरे अधर...

ओ बासंती, कोकिल कंठ तू शब्दों को दे जा,
प्रखर से ये तेरे स्वर लेकर ही, ये मुखरित हो पाएंगे,
सुर के ये सप्तम स्वर मेरे शब्दों में भर जाएँगै।

अधरों की सुरीली चहचहाहट में डूबे हैं मेरे स्वर....

ओ अधरश्रेष्ठा, कंपन होठों की इनको दे जा,
चंचल से दो अधरों के कंपन की जब उष्मा ये पाएंगे,
अर्थ मेरे इन शब्दों के कहीं व्यर्थ नहीं जाएँगे।

अधरों की कंपित वीणा मे होंगे ये मेरे स्वर प्रखर...

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