Tuesday 11 May 2021

दिल, न दूँगा उधार

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

कौन खोए, चैन अपना!
बिन बात देखे, दिन रात सपना,
फिर उसी से, ये मिन्नतें,
करे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

बेवजह ही, ये ख़्वाहिशें!
हर पल, कोई ख्वाब ही, ये बुने,
कोई काँच से, ये महल,
टूटे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

मिली हैं, कितनी ठोकरें!
यूँ किसी, शतरंज की हों मोहरें,
जैसे चाल, वो चल गए,
कई हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

दूँ भी तो, फिर क्यूँ भला!
ये उधार, वापस ही कब मिला!
बिखर न जाएँ, धड़कनें,
मेरे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. अरे वाह !
    बिल्कुल मत दीजिएगा किसी को दिल उधार !!!
    एक सरल, सच्ची, निश्छल अभिव्यक्ति। बहुत पसंद आई।

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    1. सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया। ।।

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  2. बहुत बहुत बहुत ही सुंदर रचना

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    1. सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया

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    1. सुंदर सी इस प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय

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  4. दिल उधार भी दिया जाता क्या ? अगर उधार देने पर ये सब होता है तो दिल देने पर तो न जाने क्या क्या होगा ।
    चलिए आप तो मस्त रहिए ।
    अच्छी रस्तुति

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    1. सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-05-2021को चर्चा – 4,064 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  6. बहुत खूब ... ये दिल न दूंगा उधार ...
    दिल है कोई फालतू शै नहीं जो हर किसी को उधारी देते रहो ... अच्छी रचना है ...

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    1. सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय नसवा साहब

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  7. दिल के लेन-देन में बस दर्द ही तो मिलता है । चाहे प्रेम में दो या उधारी । न दो तो भी रहा नहीं जाता है । अति सुन्दर सृजन ।

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    1. सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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