दीपक, इक मै भी चाहता हूँ जलाना....
वो नन्हा जीवन,
क्यूँ पल रहा है बेसहारा,
अंधेरों से हारा,
फुटपाथ पर फिरता मारा....
सारे प्रश्नों के
अंतहीन घेरो से बाहर निकल,
बस चाहता हूँ सोचना,
दीपक, इक मै भी चाहता हूँ जलाना....
वो वृहत आयाम!
क्यूँ अंधेरों में है समाया,
जीत कर मन,
अनंत नभ ही वो कहलाया....
सारे आकाश के
अँधेरों को अपनी पलकों पर,
बस चाहता हूँ तोलना,
दीपक, इक मै भी चाहता हूँ जलाना....
वो नन्हा जीवन,
क्यूँ पल रहा है बेसहारा,
अंधेरों से हारा,
फुटपाथ पर फिरता मारा....
सारे प्रश्नों के
अंतहीन घेरो से बाहर निकल,
बस चाहता हूँ सोचना,
दीपक, इक मै भी चाहता हूँ जलाना....
वो वृहत आयाम!
क्यूँ अंधेरों में है समाया,
जीत कर मन,
अनंत नभ ही वो कहलाया....
सारे आकाश के
अँधेरों को अपनी पलकों पर,
बस चाहता हूँ तोलना,
दीपक, इक मै भी चाहता हूँ जलाना....