जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Monday, 8 February 2016
अजनबी
अजनबी से लोग बातें भी अजनबी सी करते,
सूबसूरत से किस्से लेकिन पराए से लगते।
अजनबी शहर ये रीत अजनबी से,
दीवानगी अजनबी सी मुफलिसी अजनबी से,
चेहरों पे चेहरे लगे हर किसी के यहाँ दिखते।
अजनबी लोग क्युँ अक्श सोचता मेरा!
दिखते सब हैं इक जैसे, पर सारे यहाँ अजनबी,
बेगानों की बस्ती मे रिश्ते भी अजनबी से लगते।
गैरों से अपने अजनबी सा अपनापन,
रास्तोें की आहटें, रिश्तों की गर्माहटें यहाँ अजनबी,
खामोशियाँ तोड़ती हैं पत्तियों की बस सरसराहटें।
जीवन ही जीवन
जीवन ही जीवन होता अंकुरित यहाँ,
हर ओर बिखरा यूँ रूप-सौन्दर्य यहाँ,
कहीं स्वर धारा विविध तरंग भरती,
कही मौन पृथ्वी रस सुधा बरसाती।
सूर्य की प्रदक्षिणा में मगन सब यहाँ,
आकाश में उमड़ते बादल मंडल रवाँ,
दशाें दिशा दौड़ता जीवन प्रवाह यहाँ,
जीवन की तरुनाई से मन भरा कहाँ।
इस ओर उस ओर नयन देखते अब,
अभिवादन करते हैं प्रभात का सब,
प्रीत के आँसू आँखों से बहते हैं तब,
आह्लादित जीवन के सहस्रदल सब।
पन्ने खाली हैं आज
बनती क्युँ नही कोई कहानी अब यहाँ,
हादशों का सफर लगती है ये जिन्दगी,
विरानियों के साए में ये पन्ने अब यहाँ।
पन्ना पन्ना कभी सजता था फूलों सा,
कहता था हर पन्ना राज जिन्दगी का,
इन पन्नों को अब मिलते नहीं शब्द क्युँ,
खो गई है मायने इन पन्नों के आज कहाँ।
खाली पन्ने भी बयाँ करती कोई दासताँ,
दर्द कह जाती है मौन पन्नों की जुबाँ,
पन्ने जिन्दगी के फिर से हसेंगी शायद,
विरानियाँ पन्नों की ढुंढेगी फिर नईं जुबाँ।
यूँ ही मिलती रहो हमेशा
मिलती रहो यूँ तुम हमेशा,
चंद खबर तुम अपनी ही कहो,
कुछ मेरी भी सुृधि ले लो।
आती रहो सपनों में हमेशा,
कुछ पल तो दरश तुम्हरी मिले,
कभी तुम मेरी खबर ले लो।
करती रहो मनमानी तुम हमेशा,
बस फासलों से यूँ ही गुजरती रहो,
कुछ क्षण तो यूँ साथ चलो।
गुजरती रहो ख्यालों से हमेशा,
कुछ तारीफ अपनी मुझसे सुन लो,
ख्यालों मे ही सही यूँ संग चलो।
यूँ ही दरमियाँ में रहो हमेशा,
इस जनम फासलों की ही सुन लो,
कभी तुम मेरी फिकर कर लो।
चंद खबर तुम अपनी ही कहो,
कुछ मेरी भी सुृधि ले लो।
आती रहो सपनों में हमेशा,
कुछ पल तो दरश तुम्हरी मिले,
कभी तुम मेरी खबर ले लो।
करती रहो मनमानी तुम हमेशा,
बस फासलों से यूँ ही गुजरती रहो,
कुछ क्षण तो यूँ साथ चलो।
गुजरती रहो ख्यालों से हमेशा,
कुछ तारीफ अपनी मुझसे सुन लो,
ख्यालों मे ही सही यूँ संग चलो।
यूँ ही दरमियाँ में रहो हमेशा,
इस जनम फासलों की ही सुन लो,
कभी तुम मेरी फिकर कर लो।
Sunday, 7 February 2016
जनम जनम का प्यार
कहते रहेंगे जनम-जनम, प्यार तुमसे करते हैं हम।
जनम जनम ओ जनम जनम,
तलाशेंगी आँखें तुझको सनम,
प्यार की वादियों से गुजरेंगे हम,
अब तो संग तेरेे ही मेरे सनम।
कहते रहेंगे जनम-जनम, प्यार तुमसे करते हैं हम।
प्यास जन्मों की तुम हो सनम,
चाहत का मौसम तुमसे ही सनम,
इन वादियों मे खिल जाएंगे हम,
फूल बन के चाहत के हर जनम।
कहते रहेंगे जनम-जनम, प्यार तुमसे करते हैं हम।
(Valentine Day Special)
जीवन की पोथी
लिखते है हर दिन हम एक-एक पन्ना जिंदगी का,
कुछ न कुछ हर रोज, एक नई कलम हाथों में ले,
अपने कर्मों की गाथा से, भरते हैं जीवन की पोथी,
ये पन्ने इबारत जीवन की, कुछ खट्टी कुछ मीठी।
ये पन्ने सामान्य नही हैं,जीवन की परछाई है ये तेरी,
थोड़ा बहुत ही सही, झलक इसमे व्यक्तित्व की तेरी,
कर्मों का लेखा जोखा इसमे, भावुकता इसमें है तेरी,
ये पन्ने कल जब पढ़े जाएंगे, पहचान बनेगी ये तेरी।
हश्र क्या होगा इन पन्नों का, रह रह सोचता प्राणी!
क्या इन पन्नों में छपेगी, मेरे सार्थकता की कहानी?
पोथी बनकर महाग्रन्थ, क्या चढ़ेगी जन की जुबानी!
पन्ने जीवन के तेरे, संभल कर चल तू राह अंजानी।
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