Tuesday, 3 May 2016

हँसते मेरे अंश

निशाँ मेरी अंश के बिखरेे कण-कण में लगते हैं यहाँ!

वक्त ने आज फिर से बदली हैं करवटें,
राहों ने मोड़ दी है फिर से जीवन की दिशाएँ,
बदला-बदला सा है सब कुछ आज यहाँ,
न जानें क्युँ आज फिर प्राणों में इक कंपन सी यहाँ।

वक्त ले आया फिर उसी जगह पर हमें,
किलकारियाँ भर हँस पड़ते थे अंश जहाँ पर मेरे,
थामे उँगलिया चल पड़ते थे कहीं दिशाहीन,
अाज वो दिशाएँ दिख रही हैं प्रशस्त जीवन के यहाँ।

यादों के उस बस्ती में लाया वक्त हमें,
उन अनुभूतियों ने नए ढ़ंग से फिर सहलाया हमें,
नन्ही उँगलियाँ मेरे अंश के मन में हैं रवां,
मन में उठे हैं सुखद एहसासों के ज्वार फिर से यहाँ।

वक्त ने जगाया सुखद अनुभूतियों को नए सिरे से यहाँ!

Monday, 2 May 2016

तृष्णा और जीवन

तृष्णा ही है ये इस मन की, जिसमें डूबा है जीवन,

निर्णय-अनिर्णय के दोराहे पर डोलता जीवन,
क्या कुछ पा लूँ, किसी और के बदले में,
क्युँ खो दू कुछ भी, उन अनिश्चितता के बदले में,
भ्रम की इस किश्ती में बस डोलता है जीवन।

भ्रम के अंधियारे में है तृष्णा, जिसमें डूबा है जीवन।

कब मिल सका है सब को यहाँ मनचाहा जीवन,
समझौता करते है सब, खुशियों के बदले में,
खोना पड़ता है खुद को भी, इन साँसों के बदले में,
उस रब के हाथों में ही बस खेलता है जीवन।

कब बुझ पाएगी ये तृष्णा, जिसमें डूबा है जीवन।

सपने

कुछ सपने देखे ऐसे, सच जो ना हो सके,
आँखो में ही रहे पलते, बस अपने ना हो सके,

सपना देखा था इक छोटा सा,
मुस्कुराऊँगा जीवन भर औरों की मुस्कान बनकर,
फूलों को मुरझाने ना दूंगा,
इन किसलय और कलियों में रंग भर दूंगा,
पर जानता ही नहीं था कि आते हैं पतझड़ भी,
उजड़ चाते हैं कभी बाग भी खिल जाने से पहले,
हम सपने ही रहे देखते, इस सच को कब जान सके।

मेरी आँखो में ही रहे पलते, बस अपने ये ना हो सके।

सपना इक देखता था बचपन से,
जिन गलियों मे बीता बचपन उनकी तस्वीर बदल दूँगा,
निराशा हर चेहरे की हर लूंगा,
खुशहाली के बादल से जीवन रस टपकेगा,
पर जानता नही था कि मैं खुद ना वहाँ रहूंगा,
प्रगति के पथ पर, जीवन के आदर्श ही बदल लूंगा,
हम आदर्शों को रहे रोते, और खुद के ही ना हो सके।

इन आँखो में ऐसे ही सपने, बस अपने ये ना हो सके,
कुछ सपने देखे थे ऐसे, सच जो ना हो सके......!

Sunday, 1 May 2016

रहना तो है हमें

है पाप क्या और पुन्य क्या, है बस समझ का फेर ये!

रीति रिवाज हम कहते हैं जिसे,
सीमा इन मर्यादाओं की बंधी है बस उनसे,
पाप-पुन्य तो बस समझ के है फेरे,
रहना तो है हमें, बस इन रीतियों के बंधन के ही तले।

सच है क्या और झूठ क्या, है बस समय का फेर ये!

कभी तो ये मन भटकता दिशाहीन सा,
रीतियों रिवाजों की परवाह तब कौन करता,
सच-झूठ तो बस समय के है फेरे,
रहना तो है हमें, पर मन पर नियंत्रण तब कौन करे।

क्या सही और क्या गलत, है बस समझ का फेर ये!

भटका था मन जिस पल कहाँ थी वो मर्यादा,
मन को नियंत्रित कब कर सका है मन की पिपाशा,
सही-गलत तो बस समझ के है फेरे,
रहना तो है हमें, पर इन विसंगतियों से ही हैं हम बने।

Saturday, 30 April 2016

समय की सिलवटें

गुजरता यह समय, कितने ही आवेग से........!

कुलांचे भर रही,
ये समय की सिलवटें,
बड़ी ही तेज रफ्तार इसकी,
भर रही ये करवटें,
रोके ये कब रुक सका है, आदमी के वास्ते।

फिर किस वास्ते,
हैं शिकन की ये लकीरें,
किसका ये कब हो सका,
रोए है तू किसके लिए,
बदलता रहा है समय हमेशा, करवटें लेते हुए।

कुछ साँसें मिली,
है तुझे वक्त की ओट से,
जी ले यहाँ हर साँस तू,
इन मायुसियाें को छोड़ के,
फिर कहा तू जी सकेगा, इस समय की चोट से।

राहें मुड़ गईं

ये राहे हैं मेरी प्रीत की, इन राहों से इतर मैं जाऊँ किधर?

कब ये राहें मुड़ गई, बेखबर हैं वो अब तलक,
अंजान अपनी ही धुन में, बढ़ चले वो जाने किधर,
कौन सुनता है सदाएँ, गुजरे हुए उन राहों की,
उन राहों की ठोकरों से, अब तक रहे वो बेखबर।

तुमको सदाएँ देती रहेंगी, मंजिलें उन राहों की,
जिन राहों की मंजिलों से, अब तक रहे तुम बेखबर,
कौन सुनता है सदाएँ, गुजरे हुए उन मंजिलें की,
आज अपनी धुन में हो तुम, कल की तुमको क्या खबर।

हम आज भी है खड़े, राह की उस मोड़ पर,
मुड़ गए थे वो जहाँ से, बाहें लगन की छोड़कर,
कौन सुनता है सदाएँ, गुजरे हुए उस मोड की,
कल मिलेंगे उस मोड़ पर ही, जाना है तुमको भी उधर।

किस गगन की ओर

ये खुला आसमाँ, पुकारता है अब किस गगन की ओर?
उड़ने लगे हैं जज्बातों के गुब्बारे आसमान में,
पंख पसारे उमरते अरमानों के रथ पर,
ये एहसास कैसे उठ रहे हैं अब इस ओर..............!

मन कब रुका है, उड़ चला ये अब उस गगन की ओर!
रुकने लगे हैं जज्बात ये मन के ये किस गाँव मे,
वो गाँव है क्या, उस नीले गगन की छाँव में,
छाँव वो ही ढूंढ़ता, मन ये मेरा उस ओर.......!

रोक लूँ मैं जज्बात को, क्युँ चला ये उस गगन की ओर,!
कोई थाम ले उन गुब्बारों को उड़ रहा है जो बेखबर,
क्युँ थिरकता बादलों में, लग न जाए उसको नजर,
वो उड़ रहा बेखबर, अब किस गगन की ओर.....!

धड़कनें बेताब कैसी, कह रहा चल उस गगन की ओर!