Saturday 24 June 2023

जीत

मन में लिए, कई उलझन,
पहली बार, विदा हो आई जब मेरे आंगन,
शंकाओं भरा, 
था बड़ा ही, वो तेरा मन!

पर, कहीं, थी इक लगन,
मध्य उलझनों के, विहँसता रहा तेरा मन,
उम्मीदों भरा, 
था बड़ा ही, वो तेरा मन!

झौंक जाते, तप्त पवन,
चौंक जाते हर आहटों पर, तेरे हृदयांगन,
ममत्व भरा, 
था बड़ा ही, वो तेरा मन!

बिता चुके, इक जीवन,
हर वक्त, संग मेरे इसी देहरी इसी आंगन,
निस्वार्थ सा,
स्वत्व से परे, तेरा मन!

जाने कब हारा ये मन,
तेरे ही नैनों की गलियों में, बेचारा ये मन,
मैं हैरान सा,
छू लूं, प्यारा तेरा मन!

तुम बिन सूना जीवन,
अब तुम बिन, राहों में कितने हैं उलझन,
सब मैं हारा,
जीत चला, तेरा मन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 18 June 2023

आशाओं तक

दो तीर, चले मन,
अधीर,
अन्तः कोई पीर लिए मन!

इक तीर, ठहराव भरा,
विस्तृत, आशाओं का द्वार हरा,
दूजे, धार बड़ा,
पग-पग, इक मझधार खड़ा,
आशाएं, बांध चले मन!

छिछली सी, राहों पर,
अन्तहीन, उथली सी चाहों पर,
उस ओर चले,
जिस ओर, सन्नाटों सा शोर,
अल्हड़, मौन रहे मन!

सांझ, किरण कुम्हलाए,
‌निराशाओं के, बादल ले आए,
चले मौन पवन,
बांधे कब ढ़ाढ़स, तोड़ चले,
बंध, तोड़ बहे ये मन!

धूमिल सी, वो आशाएं,
छिछली सी, ये अंजान दिशाएं,
खींच लिए जाए,
थामे, धीरज का इक दामन,
सरपट, दौड़ चले मन!

दो तीर, चले मन,
अधीर,
अन्तः कोई पीर लिए मन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 21 May 2023

शाख


उम्मीदों-नाउम्मीदों के, साए तले,
बह चली इक सदी....

पतझड़ों के मध्य, पाले उम्मीदें कई,
चुप थी, कोई शाख,
उन रास्तों पे,
बह रही थी, जिधर इक सदी....

मध्य कहीं, सपनों सी, बहती बयार,
ले आई इक बहार,
वो भी झूमी,
झूम रही थी, जिधर इक सदी....

उड़ चले, कहीं, सपने बनकर राख,
बिखरे वे पात-पात,
कैसी ये वात,
बहा ले चली, जिधर इक सदी....

छूटी कब आशा, अरमान जरा सा,
इक उम्मीद हरा सा,
मन भरा सा,
देखे उधर ही, जिधर इक सदी....

पलट ही आएंगी, गुजरती सदियां,
खिल आएंगे, पलाश,
इक नवहास,
नवआस उधर, जिधर इक सदी....

उम्मीदों-नाउम्मीदों के, साए तले,
बह चली इक सदी....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday 16 May 2023

अक्सर

अक्सर, जग आए इक एहसास....

रुक जाए, घन कोई चलते-चलते,
घिर आए, इक बदली,
गरजे कोई बादल,
चमके बिजुरी,
उस सूने आकाश!

अक्सर, जग आए इक एहसास....

झुक जाए, पेड़ घना सूने से रस्ते,
और संग करे अटखेली,
छू कर बहे पवन,
वही अलबेली,
हो, जिसकी आस!

अक्सर, जग आए इक एहसास....

हो अधीर मन, पाने को इक पीड़,
ज्यूं सदियों अंक पसारे,
बैठा हो, इक तीर,
बहते वे धारे,
ठहर जाते काश!

अक्सर, जग आए इक एहसास....

क्यूं, छल जाए अनमनस्क मन,
क्यूं, छलके कोई नयन,
क्यूं, रुक जाए सांस,
क्यूं, टूटे आस,
क्यूं, विरोधाभास!

अक्सर, जग आए इक एहसास....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday 6 May 2023

कौन लाया

जगाए हैं किसने, दिन ये ख्वाहिशों वाले!

बन गई, सपनों की, कई लड़ियां,
खिल उठी, सब कलियां,
गा रही, सब गलियां,
कौन लाया, बारिशों के ये सर्द उजाले!
दिन ये ख्वाहिशों वाले!

जगाए हैं किसने......

अब तलक, सोए थे, ये एहसास,
ना थी, होठों पे ये प्यास,
न रंग, ना ही रास,
जलाए है किसने, मेरी राहों पे उजाले!
पल ये ख्वाहिशों वाले!

जगाए हैं किसने......

रंग जो अब छलके, पग ये बहके,
छू जाए कोई, यूं चलके,
ज्यूं ये पवन लहके,
लिए कौन आया, भरे रंगों के ये हाले!
क्षण ये ख्वाहिशों वाले!

जगाए हैं किसने, दिन ये ख्वाहिशों वाले!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 30 April 2023

मूंदो तो पलकें

मूंदो तो पलकें,
और, छू लो, उन बूंदों को,
जो रह-रह छलके!

हो शायद, नीर किसी की नैनों का,
आ छलका हो, पीर उसी का,
या गाते हों, कोई गीत,
समय की धुन पर, हलके-हलके!

मूंदो तो पलकें!

समझ पाओगे, डूबे नैनों में है क्या,
बहता सा क्यूं वो इक दरिया,
झर-झर, बहते वे धारे,
हर-दम रहते क्यूं, छलके-छलके!

मूंदो तो पलकें!

विचलित क्यूं सागर, शायद जानो,
हलचल उसकी भी पहचानो,
तड़पे क्यूं, आहत सा,
लहरें तट पर, क्यूं, बहके-बहके!

मूंदो तो पलकें!

चुप-चुप हर शै, जाने क्या कहता,
बहते से, एहसासों में रमता,
कभी, भर आए मन,
जज्बात कभी ये, लहके-लहके!

मूंदो तो पलकें,
और, छू लो, उन बूंदों को,
जो रह-रह छलके!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 13 April 2023

याद

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

वो दिन थे या, पलक्षिण थे,
पहर गुजरा, अलसाया सा दिन गुजरा, 
रात गई, जुगनू की बारात गई,
युग बीता, उन जज्बातों से!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

भटके मन, उन गलियों में,
आहट जिनसे, उन पल की ही आए,
उम्मीदें, उन लम्हातों से ही बांधे,
बिखरे खुद, जो हालातों से!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

अक्सर, आ घेरे वो लम्हा,
पूछे मुझसे, वो था क्यूं इतना तन्हा!
सिमट गए, क्यूं, बलखाते पल!
बारिश की, भींगी रातों से!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

चांद ढ़ले, जब तारों संग,
बिखराए, उनके ही, आंचल के रंग,
सुधि हारे दो नैन दिवस ही भूले,
झिलमिल सी, उन बातों में!

बांध गया कोई, अपनी ही यादों से!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday 25 March 2023

वो आप थे


जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!

तभी तो, वो एहसास था,
सर्द सा वो हवा भी, बदहवास था,
कर सका, ना असर,
गर्म सांसों पर,
सह पे जिसकी, करता रहा अनसुनी,
वो आप थे!

जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!

खुलने लगी, बंद कलियां,
प्रखर होने लगी, गेहूं की बलियां,
वो, भीनी सी, खुश्बू,
हर सांस पर,
बस करती रही, अपनी ही मनमानी,
वो आप थे!

जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!

सर्द से, वो पल भूलकर,
गुनगुनी, उन्हीं बातों में घुलकर,
गुम से, हो चले हम,
जाने किधर!
अब भी, धुन पे जिसकी रमाता धुनी,
वो आप थे!

जो सर्दियों में, खिली धूप थी गुनगुनी,
वो आप थे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 19 March 2023

इन दिनों

उन दिनों, हम गुम थे कहीं...
चुप थी राहें!
गुम कहीं, उन कोहरों में किरण,
मूक, मन का हिरण,
पुकारता किसे!

बे-आवाज, पसरी वो राहें...
संग थी मेरे,
चल पड़ा, चुनकर वो एक पंथ,
लिए सपनों का ग्रंथ,
अपनाता किसे!

बह चला, वक्त का ढ़लान...
वो इक नदी,
बहा ले चली, कितनी ही, सदी,
बह चले, वो किनारे,
संवारता किसे!

दिवस हुआ, अवसान सा...
रंग, सांझ सा,
डूबते, क्षितिज के वे ही छोर,
बुलाए अपनी ओर,
ठुकराएं कैसे!

इन दिनों, हम चुप से यहां...
वे क्षण कहां!
पर बिखरे हैं, फिर वो ही कोहरे,
गगन पे, वो ही घन,
निहारता जिसे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday 17 March 2023

उम्र की क्या खता


उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!

तेरी ही सिलवटों से, झांकता,
भटकता, इक राह तेरी,
ढूंढता, धुंधली आईनों में,
खोया सा पता!

उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!

इक धार तेरी, सब दी बिसार,
बहाए ले चली, बयार,
उन्हीं सुनसान, वादियों में,
ढूंढ़ू तेरा पता!

उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!

लगे, अब आईना भी बेगाना,
ढ़ले, सांझिल आंगना,
दरकते कांच जैसे स्वप्न में,
भूल बैठा पता!

उम्र की क्या खता, वक्त तू ही बता!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)